भारत में किसी भी समाचार पत्र/ पत्रिका को प्रकाशित करने से पूर्व उसे पंजीकृत करवाना होता है । भारत के समाचारपत्रों का कार्यालय जो आम तौर पर आर. एन. आई. के नाम से जाना जाता है, पहली जुलाई 1956 को अस्तित्व में आया । इसकी स्थापना प्रथम प्रेस आयोग 1953 की सिफारिश पर प्रेस एवं पुस्तक पंजीयन अधिनियम में भारतीय समाचारपत्रों के पंजीयक के कर्त्तव्यों और कार्यों को दिया गया है । पिछले कुछ वर्षोंके दौरान भारत के समाचारपत्रों के पंजीयक को सौंपे गए कुछ और दायित्वों के कारण इस कार्यालय को कुछ विधि विहित और कुछ सामान्य दोनों तरह के कार्यों को करना है ।
विधि विहित कार्यों के अंतर्गत देश भर के प्रकाशित समाचारपत्रों का एक रजिस्टर तैयार करना, उसका रखरखाव करना और उसमें समाचरपत्रों का विवरण संकलित करना, वैध घोषणा के अंतर्गत प्रकाशित समाचारपत्रों को पंजीकरण प्रमाणपत्र जारी करना, समाचारपत्रों के प्रकाशकों द्वारा प्रेस पुस्तक पंजीयन अधिनियम की धारा 19 डी के अंतर्गत प्रसारण स्वामित्व आदि सूचना के साथ प्रतिवर्ष भेजे गए वार्षिक विवरण की जाँच और विश्लेषण करना, इच्छुक प्रकाशकों की घोषणा दायर करने के लिए जिला मजिस्ट्रेटों को उपलब्ध नामों की सूचना देना, यह सुनिश्चित करना कि समाचारपत्र प्रेस और पुस्तक पंजीयन अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत प्रकाशित करना, प्रेस और पुस्तक पंजीयन अधिनियम की धाता 19-एफ के अंतर्गत प्रकाशकों द्वारा अपने वार्षिक विवरणों में दिए गए प्रसार दावों की जाँच करना और भारत में प्रेस के बारे में उपलब्ध समस्त सूचना तथा आँकड़ों और विशेष रूप से प्रसार तथा समान स्वामित्व वाली इकाइयों के क्षेत्र में उभरती प्रवृत्तियों के उल्लेख के साथ एक रिपोर्ट तैयार करना और उसे प्रतिवर्ष 31 दिसंबर को या उससे पहले सरकार को प्रस्तुत करना होता है ।
सामान्य कार्यों के अंतर्गत अखबारी कागज आवंटन नीति और दिशा निर्देशों का क्रियान्वयन और समाचारपत्रों की पात्रता प्रमाणपत्र जारी करना ताकि वे अखबारी कागज का आयात कर सकें और हकदारी प्रमाणपत्र जारी करना ताकि वे देशी अखबारी कागज प्राप्त कर सकें । समाचारपत्र प्रतिष्ठानों की मुद्रण और कंपोजिंग मशीनें और अन्य संबंधित सामग्री आयात करने की आवश्यकता जरूरतों को मूल्यांकित और प्रमाणित करना आदि है ।
पहले यहाँ मैनुअली कार्य होता था परन्तु वेबसाईट बनने के बाद अब कंप्यूटरीकृत व्यवस्था हो गई है । गौर करने पर पता चलेगा कि यहाँ किसी की कोई जिम्मेदारी ही तय नहीं हैं । सब कुछ मनमाने तरीके से एवं त्रुटिपूर्ण हो रहा है । शिकायत करने पर नियम कानून बताए जाते हैं । जब नियम और कानून का हवाला देकर प्रश्न पूछे जाते हैं तो अधिकारी उत्तर से कतराते हैं और कहते हैं कोर्ट में पूछिए । यहाँ मिलने का समय दोपहर 3 से 5 तक निर्धारित है मगर इस वक्त भी अधिकांश बड़े अधिकारी व उनके सहायक मीटींगों में व्यस्त रहते हैं, फिर समस्या की फरियाद किससे की जाय और उसका समाधान कैसे हो? दिल्ली से अलग राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ तो और दिक्कतें आती हैं । सबसे बड़ी समस्या काउंसलिंग की है । सही तरीके से सही जानकारी देने की परंपरा ही नहीं है यहाँ ।
उपरोक्त अनुभव मुझे तब हुआ जब अपनी मासिक पत्रिका समय दर्पण के पंजीकरण हेतु मुझे बार-बार इस कार्यालय के चक्कर काटने पड़े । मेरे पत्रिका का शीर्षक अस्वीकृत हो गया था । अतः मैंने पुनः अन्य शीर्षकों के साथ आवेदन अग्रसारित किया परन्तु मुझे पिछला छपा जवाब ही पुनः भेज दिया गया । तब एपीआर को स्पीड पोस्ट से पत्र भेजा, जवाब नहीं मिलने पर दो बार के बाद तीसरे बार में मात्र पाँच मिनट के अंतिम समय में वक्त मिला परन्तु नियम और कानून का हवाला और कोर्ट में केस करने की चुनौती दे डाली । मेरा तर्क ये था कि जब इंडिया टुडे, इंडिया न्यूज, इंडिया दर्पण नाम स्वीकृत हो सकता है तो समय सर्पण क्यों नहीं स्वीकृत हो सकता ? थक हारकर मैंने RTI के अंतर्गत अपना आवेदन डालकर प्रश्न पूछने का दुस्साहस किया है । मुझे शीर्षक मिले ना मिले परन्तु मेरे साथ जो घटनाएँ हुईं वह केन्द्र सरकार के प्रतिष्ठित संस्थान की कार्यशैली को रूबरू बयान करती है । सबसे बड़ा तो प्रश्न यह है कि शीर्षक स्वीकृति के बाद दो वर्ष का प्रकाशन समय दिया जाना कहीं से भी उचित नहीं है । इसकी अधिकतम समयसीमा मात्र तीन महीने दी जानी चाहिए ।
आर. एन. आई. वेबसाईट के माध्यम से शीर्षक खोज का जो विकल्प देती है उसमें जानकारी का काफी अभाव है । सामान्यतः लोग सर्च में शीर्षक डालकर नाम ढूँढते हैं और फिर नाम का आवेदन कर देते हैं, परन्तु वास्तव में इतने भर से संतुष्ट होकर खोज समाप्त नहीं होती है बल्कि अन्य राज्यवार, भाषावार एवं टाइटल अप्रूव्ड ऑप्शन भी तलाशने जरूरी हैं । सवाल यह उठता है कि यह तकनीकी जानकारी वेबसाईट पर स्पष्टतः क्यों नहीं है । वेबसाईट पर नया फॉर्म भी काफी दिनों बाद डाला गया, फिर वेबसाईट की उपयोगिता क्या रह गई ? आखिर जानकारी के अभाव में जो समस्याएँ बढ रही हैं उसके समाधान की जिम्मेदारी कौन लेगा? जवाब का छपा प्रपत्र भर भेज देने से समस्या कभी नहीं हल हो सकती है । आरएनआई को एक से अधिक टाइटल शुरू में ही देने का विकल्प देने की अनिवार्यता देनी चाहिए ।
सूचना व प्रसारण राज्यमंत्री सी. एम. जटुआ ने लोकसभा में जानकारी दी कि देश में 74,000 से अधिक अखबार भारत सरकार के रजिस्ट्रार ऑफ न्यूजपेपर्स (आर.एन.आई.) से पंजीकृत हैं । उत्तरप्रदेश में सबसे अधिक अखबार पंजीकृत हैं । वहाँ कुल 11,789 अखबार पंजीकृत हैं । दिल्ली का नंबर उसके बाद आता है जहाँ 10,066 पंजीकृत अखबार है । महाराष्ट्र 9,127 अखबारों के साथ तीसरे स्थान पर है । सवाल यह उठता है कि क्या आरएनआई के पास सारे 7400 अखबारों की नमूना प्रति है? वर्तमान में प्रकाशित हो रहे समाचारपत्रों की संख्या क्या है? असलियत यह है कि एक से अधिक शीर्षक की आड़ में कुछ बिचौलिये खरीदने, बेचने के व्यापार में संलग्न हैं । अखबारी कागज की कालाबाजारी भी इन लोगों की मिलीभगत से की जाती है । कुछ ऐसा ही हाल डीएवीपी का भी है जहाँ बेनामी और फर्जी अखबारों को भ्रष्टाचारी अफसरों की मिलीभगत से विज्ञापन जारी किए जा रहे हैं । सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को इस व्यवस्था में त्रुटि सुधारने की कोई जरूरत नहीं समझ आती ।
(कृष्णगोपाल मिश्रा )
Tuesday, September 8, 2009
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बाप रे बाप.....इतनी अंधेरगर्दी.....लेकिन मुझे लगता है कि अब आने वाले समय में ऐसे लोगों का इलाज डंडा ही होगा....और जनता अपने कार्य कराने के लिए...अपने साथ हमेशा एक डंडा अवश्य रखेगी....बाकी आपका ब्लॉग अत्यंत सु-सोच-पूर्ण है....साथ ही उद्देश्यपूर्ण भी....इसलिए इस ब्लॉग पर आकर बड़ी प्रसन्नता हुई....आपका आभार...और आपके लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeletegood one....................
ReplyDeletemera apana anubhaw aapke saath batata hun. thore din pahale mai RNI me gaya to vahan ki peception per baithi ledy ne pure ghamand se kaha HUM REPORTER BANATE HAI ....
ReplyDeleteaur jara der baad maine paya EK BOTTAL DARU VAHAN PER aaye aur peon ne ek clerks ke saath baat kar ke use paas ki almari me rakha. eski shikayat bhi mane kari per koi farka nahi.
manmani bas sharif ko tang karne tak hai kamjor per jor lagane tak hai Aander yug ke JANGAL RAJ ki tarah mighty is right...
Dr.Atul kr
9313450055
This is a very good article & beneficial for common people. It can teach the people for their rights.
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