रियलिटी शो ‘सच का सामना’ ने एक नए बहस को जन्म दे दिया है कि “क्या हम सच का सामना करने में सक्षम हैं ?” । कहते हैं सच्चाई हमेशा कड़वी होती है । कड़वे का स्वाद चखने का दुस्साहस हर कोई नहीं कर सकता । यह सच है कि सच्चाई उगलने की क्षमता हर किसी को नहीं होती । कहा जाता है कि अंततः हमें सच्चाई को स्वीकार करना है, वो कहना नहीं है और जो हमें कहना है वो करना ही है । देरसबेर जसवंत सिंह ने भी सच्चाई का सामना किया और कई राज उगल दिए । यह अलग बात है कि उससे भाजपा के समक्ष एक गंभीर संकट पैदा हो गया है । भाजपा ने अपने चिंतन शिविर में हार की समीक्षा के बजाय आगामी रणनीति पर चर्चा करना मुनासिब समझा क्योंकि भाजपा में सच का सामना करने का सामर्थ्य ही नहीं बचा है । हमारे देश की सीबीआई के बारे में प्रधानमंत्री का बयान आता है कि सीबीआई अपनी विश्वसनीयता कायम करे । उनका यह भी बयान आता है कि भ्रष्टाचार की नदी में मौजूद बड़ी मछलियों का शिकार किए जाने की पहल होनी चाहिए । देश का धन विदेशी स्विस बैंक में चला गया है । उसे वापिस लाने की बात हमारे राजनेता कर रहे हैं । आश्चर्य है इतनी देर बाद उन्होंने इस सच का सामना किया है परन्तु भारत की आम जनता तो हमेशा देश में व्याप्त गरीबी, महंगाई, भ्रष्टाचार, प्राकृतिक आपदा और आतंकवाद की समस्या से जूझ रही है । सरकार की तुलना में जनता को सच का सामना करना करना ही पड़ता है । सरकार भले ही इस सच्चाई से मुख मोड़ ले परन्तु यह ध्रुव सत्य है कि उसे अंततः सच को कुबूल करना ही पड़ेगा । चकाचौंध और धूम-धड़ाके के साथ शुरू हुए रियलिटी शो की असली तस्वीर अब सामने आने लगी है । सामान्य मनोरंजन चैनलों (जीईसी) पर आनेवाले रियलिटी शो जो इन चैनलों के लिए सफेद हाथी ही साबित होने लगे हैं और दर्शक उनसे मुँह मोड़ने लगे हैं । रियलिटी शो शुरू में सुर्खियां बटोरकर रेटिंग अर्जित करने में कामयाब हो जाते हैं लेकिन धीरे-धीरे दर्शकों की दिलचस्पी इनमें घट जाती है । इसलिए घरेलू कहानियों वाले धारावाहिक ही चैनलों के लिए कमाई का मुख्य जरिया बने हुए हैं । दर्शकों का दुलार भी चैनलों को इन्हीं कार्यक्रमों से मिल रहा है । ‘स्टार प्लस’ पर कुछ हफ्तों पहले शुरू हुए “सच का सामना” की ही मिसाल लें । पहले ही ऐपीसोड से यह रियलिटी शो विवादों की धुरी बन गया । देर रात १०.३० बजे प्रसारित होने के बाद भी शो ४.६ प्रतिशत की टीवीआर हासिल कर पाई परन्तु अब इसकी टीवीआर २.२ प्रतिशत पर जाकर अटक गई है । विवादों के चलते इसका प्रसारण समय खिसकाकर ११ बजे करना पड़ा । “सच का सामना” के प्रसारण के बाद सचों का सामना होने की घटनाएँ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुईं । उत्तरप्रदेश के ग्रेटर नोएडा में उक्त कार्यक्रम देखने के बाद पति ने पत्नी को सच कहने के लिए यह कहकर फुसलाया कि सच कड़वा भी हुआ तब भी उसका प्यार कम नहीं होगा । उसने कसम देकर पत्नी पर सच बोलने का दबाव डाला । पत्नी ने मजबूरन कह दिया शादी से पहले उसके अपने प्रेमी के साथ शारीरिक रिश्ते थे । पति ने सदमे में फाँसी लगा ली । दूसरा समाचार उत्तरप्रदेश के ही मेरठ जिले का है, जहाँ पत्नी ने कथित रूप से अवैध रिश्ते कबूले तो पति ने उसे ब्लेड से छलनी कर दिया । पत्नी अस्पताल पहुँच गई और पति अब जेल में यह कहकर बचने की कोशिश में है कि टीवी प्रोग्राम देखकर उसे भी पत्नी का सच जानने की इच्छा हुई और जब पत्नी ने सच बताया तो उसकी प्रतिक्रिया तो स्वाभाविक ही थी । क्या कोई पति यह सच सहन कर सकता है । भारतीय परंपरा में अब सच स्वीकार करने वाली बात ही नहीं रह गई है । अयोध्या की प्रजा को सीता द्वारा रावण की लंका में गुजारे समय का सच मंजूर नहीं हुआ था । खुद राम पर प्रजा का दबाव होने के कारण सीता को अग्निपरीक्षा दिलवाकर सच का सामना करवाया गया । परन्तु वर्तमान युग में प्राचीन युग की परंपरा का अनुकरण किया जाएगा तो परिणाम क्या होगा? यह कलियुग है, जिसमें सच्चाई और ईमानदारी अत्यधिक अल्प १ प्रतिशत (मान लें)है जबकि ९९% झूठ पर टिकी है यह दुनिया अब मन में प्रश्न उठता है कि शो देखते-देखते अचानक पत्नियाँ ही क्यों अपने ‘सच’ का सामना करने लग गई हैं । क्या पत्नी के सच के अलावे और कोई सच इस दुनिया में नहीं है? पतियों को भी सच स्वीकार करने की तैयारी कर लेनी चाहिए । मगर पुरूषवादी समाज में पुरूष के बजाय महिला को ही बलि का बकरा बनाया जाएगा । मुझे लगता है कि इस कार्यक्रम का संदेश यही है कि आज सबसे बड़ी आवश्यकता है सच को स्वीकार करने की ताकत, पारदर्शिता तथा औरों के साथ वही व्यवहार जिसकी हम खुद अपेक्षा रखते हैं । संसद में इस टीवी कार्यक्रम पर आरोप लगाया गया है कि इससे समाज में बुराई फैल रही है । अंदर की बात यह है कि इस टीवी कार्यक्रम के बहाने सुविधानुसार पत्नी के चरित्र पर कीचड़ उछालने का बहाना पुरूषों को मिल गया है । जिससे निजी जिंदगी प्रभावित हो रही है । इस टीवी कार्यक्रम को सहानुभूति मिल रही है परन्तु अंदर से, बाहर से नहीं क्योंकि यदि बाहर से सबों का समर्थन मिल गया तो फिर क्रांति आ जाएगी । पति-पत्नी संबंध के अलावे इसे राष्ट्र के व्यापक परिप्रेक्ष्य में एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है । कुछ लोगों की यह राय हो सकती है कि इससे समाज में गलत संदेश जा रहा है परन्तु सच्चाई यही है कि ईमानदारी और भ्रष्टाचार को लक्ष्य कर इसका प्रयोग किया गया तो इसका सार्थक परिणाम निकेलगा । देश में संपूर्ण क्रांति आएगी । “सच का सामना” पर विकास कुमार प्रश्न उठाते हैं कि “क्या कमजोर है हमारी सभ्यता? "अभी हाल ही मे एक टीवी शो शुरू हुआ है (सच का सामना) हुआ है और साथ ही शुरू हुआ है इसका विरोध । इस शो के बारे में जो विरोध लिखकर या बोलकर रहा है, नाहक है, बेकार है, कहूं तो बेमतलब है क्योंकि इसका फायदा तो शो को ही मिल रहा है । मुझे नहीं लगता कि यह मसला इतना जरूरी था कि देश की संसद का भी एक दिन इसी बारे में सवाल-जवाब करते हुए गुजरे । वैसे तो हर साल काफी ऐसे मुद्दे रह जाते हैं जिसपर बहस करने के लिए संसद को वक्त ही नहीं मिलता । समझ नहीं आता कि क्यों इस देश में लोगों को नाहक में मॉरल पॉलिसी बनाने की पड़ी रहती है। कोई इन्सान अपनी मर्जी से उस शो में जाता है। सब कुछ जानते हुए सच बोलता है तो हमें क्यों तकलीफ हो रही है? क्यों हम नैतिकता का डंडा भांजने पर उतारु हो रहे हैं। कुछ लोगों का तर्क है कि इस शो से देश की सभ्यता और संस्कृति खराब होती है । कोई मुझे बतलाएगा कि देश की संस्कृति क्या है और ऐसी कौन-सी हरकतें हैं, जिनसे हमारी सभ्यता चोटिल नहीं होती है । किसी ने पेंटिंग बना दी तो सभ्यता चोटिल होती है, किसी लड़की ने अपनी मर्जी से शादी कर ली या कपड़े पहन लिए तो संस्कृति घायल हो जाती है, सेक्स और काम पर बात हो जाए तो सभ्यता घायल। अगर इतनी नाजुक है हमारी सभ्यता तो माफ करियेगा, आज के एक बड़े वर्ग को ऐसी किसी सभ्यता और संस्कृति के बोझ को ढोने की कोई जरुरत नहीं है। आपको आपकी ये थोथी सभ्यता और संस्कृति मुबारक़ हो.. ढोते रहिये!
पैसे की चाहत में फर्जीवाड़ा कर झूठा दावा करनेवाले अनेक मामले अक्सर सुने जाते हैं लेकिन अब गलत बीमा क्लेम, फर्जी कागजात, प्रॉपर्टी विवाद, कंप्यूटर डेटा चोरी, हैकिंग, चाइल्ड स्वैपिंग या अन्य तरह के अपराध में सच का खुलासा करना कठिन नहीं होगा । भारत की पहली निजी फॉरेंसिक लैब “ट्रुथ लैब्स” में जाकर आप न्याय की आस लगा सकते हैं । साउथ दिल्ली में एक महीने पहले ट्रुथ लैब्स ने अपनी एक शाखा शुरू की है । पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल पर आधारित और सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एक्सपर्ट्स की देखरेख वाली इस लैब का भी काजी कामा प्लेस में केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम द्वारा उद्घाटन किया गया । ट्रुथ लैब के संस्थापक गाँधी पी. सी. काजा के अनुसार लैब को शुरू हुए अभी एक ही महीना हुआ है और अभी से उसके पास १० मामले आ गए हैं । काजा खुद एक फॉरेंसिक एक्सपर्ट हैं और हैदराबाद की एपी फॉरेंसिक लैब को स्थापित करने में उन्होंने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी । उम्मीद है कि इससे “सच का सामना” में काफी मदद मिलेगी । डिजिटल सोसाइटी के निर्माण में यह मील का पत्थर साबित होंगे, क्योंकि दूध का दूध और पानी का पानी अपने समक्ष आ सकेगा । इस लैब के जाँच के दायरे में डॉक्यूमेंट, डीएनए जाँच, पोलिग्राफिक टेस्ट, साइबर क्राइम, वॉइस व इमेज एनैलसिस, विवादित फिंगर प्रिंटस व एक्सिडेंट का विश्लेषण आदि होगा । अंत में प्रसिद्ध व्यंग्यकार अविनाश वाचस्पति की व्यंग्य रचना “सच का सामना” ----- सच का सामना में पप्पू की पत्नी कर रही है खुलासाखोने, खो देने के विवरण परबतला रही है सचपक्का सचउससे पूछा गयापप्पू जब डाँटता थातो गुस्से को अबतक कैसे करती रही हो मेनैजसच का सामनाके एक धाँसू सवाल परबतलाया उसनेमैं टॉयलेट साफ करतीसारा श्रम मेरा झलक आता था उसकी सफाई मेंपूछा एंकर नेपर गुस्सा इससे कैसे होता था ठंडाबोली वो सीधा है फंडाजिश ब्रुश से करती थी साफवो टूथ ब्रुश होता था ।पप्पू, पतिदेव काएंकर ने मशीन मेंजब डाला प्रश्नतो मशीन रही चुपयानी मौन स्वीकृति लक्षणम् -( गोपाल प्रसाद )
Thursday, September 3, 2009
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