Thursday, September 3, 2009

रीता सिंह के सम्मान में काव्य संध्या




हिमाचल प्रदेश के कुल्लू से दिल्ली आईं राष्ट्रीय कवियित्री रीता सिंह के सम्मान में अखिल भारतीय साहित्य परिषद की दिल्ली प्रदेश इकाई द्वारा हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभागार में काव्य संध्या का आयोजन किया गया जिसमें कवियों ने अपनी-अपनी कृतियों से श्रोताओं को आत्मविभोर कर दिया । जैसा कि सर्वविदित है अखिल भारतीय साहित्य परिषद संध्या में यह परिपाटी है कि कोई भी साहित्यकार किसी कार्य से अन्य प्रदेश में जाते हैं तो उनके सम्मान में साहित्य गोष्ठी की आलोचना स्थानीय संस्था द्वारा किया जाता है । उक्‍त परिप्रेक्ष्य में किए गए इस आयोजन में संचालनकर्ता जय सिंह आर्य ने रीता को लक्ष्य कर स्वामी जी की पंक्‍ति का उल्लेख करते हुए कहा ... जब बोले तो मीरा की भजन लगती है / सभ्यता की फूल बनकर कार्यों में खिलकर बढ़ी । कवि जय सिंह आर्य ने पानी दे तू पानी दे एवं वो परेशानियों से डरेगा भी क्यूँ, आया जीने का जिसको हुनर साथियों । पलकें झुकाकर अब यूँ ही न जाइये, हमको जवाब आपके होठों से चाहिए । वही उपहास करते हैं हमारी बेबसी पर जिन्हें गढ़कर हमने तराशा था, की काफी वाहवाही हुई । डॉ. रेखा व्यास ने - “ये सावन भी कैसा सावन, फूल भी अब डरकर खिलते हैं, क्यों है अब गूँगापन, भोर पपीहा डर कर भागे, रिश्ते नहीं लगते, रीत गया उनका अपनापन सुनाकर श्रोताओं का ध्यान आकृष्ट किया । दुष्यंत कुमार चतुर्वेदी की कविता “आरक्षण” की एवं राष्ट्रहित सेवा संगठन के महासचिव सौरभ सचदेवा तथा देवेन्द्र माँझी की कविता की सभी ने तारीफ की । स्वामी श्यामानंद सरस्वती ने कविता की दिशा कटाक्ष करते हुए कहा “जब से संज्ञा को विशेषण लुभाने लगी, कुर्सी की तरफ व्याकरण होने लगी । “आप सबका प्यार हमको चाहिए, राष्ट्र का उद्धार हमको चाहिए” सुनाकर श्रोताओं को वीर रस से उन्होंने भर दिया । समय दर्पण के संपादक गोपाल प्रसाद ने कहा कि हमें कविता की प्ररेणा रीताजी से मिली है और हमारी कविताओं के अधिकांश शीर्षक रीताजी का कविताओं के शीर्षक से मिलते हैं । वास्तव में हमने रीताजी की कविताओं के प्लॉट की चोरी की है । उन्होंने अपनी कविता ‘आज का प्रश्न सुनाया’ । “हर तरफ उठ रहे हैं नए प्रश्न, कहीं जाति, भाषा, धर्म और क्षेत्रवाद का प्रश्न कहीं उन्मुक्‍तता और यौन स्वच्छंदता का प्रश्न, कहीं भ्रष्टाचार, अपहरण, बलात्कार का प्रश्न तो कहीं है आधुनिकता बनाम पुरातन का प्रश्न, कहीं विचार, दृष्टि और क्रांति का प्रश्न कहीं दलित और मानवाधिकार का प्रश्न, कहीं आजादी और गुलामी का प्रश्न कहीं, विकास, न्याय और हार जीत का प्रश्न, कब तक जूझते रहेंगे हम इन प्रश्नों से ... जब कोई प्रश्न हमें उद्वेलित ही नहीं कर सकता तब प्रश्न उठता है कि वैचारिक क्रांति होगी तो होगी कैसे? क्योंकि अब प्रश्न विस्फोट नहीं करते उन नकली पटाखों की तरह , जो आग लगने के बाद भी प्रभावहीन रहते हैं । दिल्ली के पूर्व मेयर महेश चंद्र शर्मा ने आगत कवियों से अनुरोध किया कि अपने सृजन में राष्ट्रवाद, देश की समस्याओं तथा समाधान को स्थान दें । हमारे विलुप्त होते संस्कार एवं संस्कृति को बचाने की जिम्मेदारी विशेष रूप से चिंतकों, साहित्यकारों, पत्रकारों तथा बुद्धिजीवियों की ही है, इसलिए उन्हें इसका निर्वाह करना चाहिए । समाजशास्त्री एवं कवियित्री रीता सिंह जी अपने पुत्र का नामांकन दिल्ली के हिंदू कॉलेज में कराने आईं थीं । अपने संबोधन में रीता सिंह ने कहा कि विद्रोही बच्चे के जन्म, जमींदारी प्रथा का घुटन, पर्यावरण असंतुलन एवं स्त्रियों की दुर्दशा ने मुझे कवियित्री बना दिया । उन्होंने ‘स्लम बस्ती की स्त्री” एवं “जंगल के हत्या की साजिश” कविता के अलावे यह भी सुनाया । “छूटा माटी सूनापन, भाव भावना में दंगल है बुद्धि हुई है अब सौतन, मन की मन से अब अनबन खुशियाँ कब किसके दर ठहरी, क्यूँ बाँधा उनसे बंधन दागो गोली खून दनादन, हरियाली को ढूँढे वन । ” रीता सिंह ने कहा कि उन्होंने “झोपड़पट्टियों में निवास करनेवालों का विचलित व्यवहार” विषय पर पीएचडी की है । सन्‌ १९९९ में अ.भा.सा.परिषद से जुड़ी । पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनका नाम रखा था छुटकी । वाजपेयी के प्रति खास चिंतन उनके संबोधन में । उन्होंने कहा कि राष्ट्र को विश्‍व पटल पर रखनेवाले व्यक्‍तित्व हैं वाजपेयी । फिर वे मंच पर क्यों नहीं दिख रहे? वे भीष्मपितामह हैं जिन्होंने हम सभी को प्रेरणा दिया । अंत में धन्यवाद प्रस्ताव के बाद सौहार्दपूर्ण वातावरण में कार्यक्रम का समापन हुआ ।

No comments:

Post a Comment

I EXPECT YOUR COMMENT. IF YOU FEEL THIS BLOG IS GOOD THEN YOU MUST FORWARD IN YOUR CIRCLE.