Thursday, September 3, 2009

हीन नहीं है हिंदी

“निज भाषा उन्‍नति अहै, सब उन्‍नति को मूल बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूलअंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीनपे निज-भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन” - भारतेन्दु हरिश्‍चन्द्र
हिन्दी की व्यापकताहिंदी भाषा को संसार भर में सबसे अधिक बोली जानेवाली भाषाओं में से एक होने का सम्मान प्राप्त है और यह विश्‍व के ५६ करोड़ लोगों की भाषा है । आँकड़े बताते हैं कि भारत में ५४ करोड़ तथा विश्‍व के अन्य देशों में २ करोड़ हिंदी भाषी हैं । नेपाल में ८० लाख, दक्षिण अफ्रीका में ८।९० लाख , मॉरीशस में ६.८५ लाख, संयुक्‍त राज्य अमेरिका में ३.१७ लाख, येमन में २.३३ लाख, युगांडा में १.४७ लाख, जर्मनी में ०.३० लाख, न्यूजीलैंड में ०.२० लाख तथा सिंगापुर में ०.०५ लाख लोग हिंदी भाषी हैं । इसके अलावा यू. के. तथा यू. ए. में भी बड़ी संख्या में हिंदीभाषी लोग निवास करते हैं । विश्‍व की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी का स्थान दूसरा है । हिंदी भाषा अंतरजाल की प्रमुख भाषाओं में से एक बनने की पूर्ण योग्यता रखती है और निकट भविष्य में वह अपने लक्ष्य को पूर्ण करने में अवश्य ही सफलता प्राप्त कर लेगी । हिंदी के विकास में हम सभी को अपना योगदान देना होगा और इसे अंतरजाल की प्रमुख भाषाओं में से एक बनने में सफल बनाना होगा । मानसिकता और हिंदी भारतेन्दु हरिश्‍चन्द्र ने कहा था कि “विदेशी भाषा से कभी तरक्‍की नहीं हो सकती । विदेशी भाषा अपनाना परतंत्रता का प्रतीक है । ” अंग्रेजी अपनाकर हम वास्तव में गुलामी की ओर ही बढ़ेंगे । हमें अंग्रेजी का विरोध करने के बजाय हिंदी के दायरे को बढ़ाने की दिशा में सोचना होगा । हिंदी भाषा ही नहीं बल्कि यह हमारी संस्कृति भी है और संस्कृति की रक्षा करना उसका संरक्षण व संवर्द्धन हमारा कर्तव्य है । कुछ अंग्रेजी ‘मानसिकता वाले अफसरशाहों एवं अंग्रेजी मीडीया और इंटरनेट की वजह से अंग्रेजी प्रभावशाली दिखती है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है । “विशिष्ट पहचान पत्र परियोजना” के प्रमुख नंदन नीलेकणी द्वारा लिखित पुस्तक “इमेजिनिंग इंडिया” में अंग्रेजी का दबदबा बढ़ने का प्रमुख कारण मैकाले की नीति को बताया गया है । नंदन नीलेकणी कहते हैं कि - भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी भारी वित्तीय संकट का सामना कर रही थी । यहां तक कि वह दिवालिया होने की कगार पर पहुंच चुकी थी । वर्ष १८२८ में गवर्नर जनरल विलियम बेंटिक को कंपनी की प्रशासनिक लागत कम करने का जिम्मा देकर भारत भेजा गया । उनकी एक सिफारिश यह थी कि कंपनी के न्यायिक और प्रशासनिक काम से ब्रिटिश कर्मचारियों को हटा कर उनकी जगह सस्ते भारतीय ग्रेजुएट रखे जाएं । अपने इस मकसद को पूरा करने के लिए उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी १८३३ के चार्टर एक्ट में एक प्रावधान जुड़वाया । इसके तहत किसी भी सरकारी नौकरी के लिए धर्म, जाति जन्म वंश का कोई बंधन नहीं था । लेकिन अंग्रेजी में पारंगत लोगों का वर्ग तैयार करने के लिए अंग्रेजी शिक्षा से संबंधित नीति की जरूरत होती । इसके लिए अंग्रेजी शिक्षा से संबंधित नीति की जरूरत होती । इसके लिए बेंटिक को अधिकारियों की एक टीम से जद्दोजहद करनी पड़ी, जो इस बात पर बंटी हुई थी क्या यहां सीधे-सीधे अंग्रेजी थोप कर अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा दिया जा सकता है । लेकिन जब तक १८३४ में थॉमस मैकाले जनरल कमेटी ऑफ पब्लिक इंस्ट्रक्शन के नए अध्यक्ष बनकर आए तब तक अधिकारियों का एक बड़ा वर्ग अंग्रेजी शिक्षा नीति के पक्ष में लामबंद हो चुका था । मैकाले ने पूरी शिद्दत के साथ अंग्रेजी शिक्षा की नीति को लागू करने पर जोर दिया । २ फरवरी, १८३५ की बैठक के अपने विवरण में उन्होंने भारतीय शिक्षा पद्धति को खारिज कर दिया । मैकाले ने अंग्रेजी भाषा में दीक्षित भद्रलोक बनाने की बेंटिक की सोच का समर्थन किया । उन्होंने कहा, हमें एक ऐसा वर्ग तैयार करना है जो हमारे और उन करोड़ों भारतीयों के बीच दुभाषिये का काम कर सके, जिन पर हम शासन करते हैं । हमें भारतीयों का एक ऐसा वर्ग तैयार करना है, जिनका रंग और रक्‍त भले ही देशी हो लेकिन वह अपनी अभिरूचि, विचार, नैतिकता और बौद्धिकता में अंग्रेज हों । मैकाले इस नीति पर अड़े हुए थे और उन्होंने साफ-साफ बता दिया कि अगर उनकी सिफारिशों को मंजूर नहीं किया गया तो वो परिषद से इस्तीफा दे देंगे । मैकाले की सिफारिशों को लागू किए जाने की राह में कोई अड़चन नहीं थी । बेटिंक मैकाले के समर्थक थे । इस तरह ब्रिटिश भारत की शिक्षा नीति जल्द ही बदल गई । अंग्रेजी प्रशासनिक कामकाज की भाषा बन गई । १८३५ में इंग्लिश एजुकेशन एक्ट लागू होने के तीन साल के अंदर ही अंग्रेजी प्रशासनिक कामकाज की भाषा बन गई । ईस्ट इंडिया कंपनी ने घोषणा की कि अंग्रेजी में पढ़े-लिखे भारतीय को सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में प्राथमिकता मिलेगी । इस तरह १८५७ में अंग्रेजी भाषा में शिक्षा के लिए तीन विश्‍वविद्यालयों की स्थापना हुई । इतिहासकार रॉबर्ट किंग का मानना है कि अंग्रेजी को आगे बढ़ाना एक तरह से देशी भाषाओं के खिलाफ उठाया गया कदम था । कन्‍नड़ और तमिल जैसी देशी भाषाएं तो अंग्रेजी से कई सदी पुरानी थीं । इस तरह अंग्रेजी को साम्राज्यवाद के एक हथियार के तौर पर देखा जाने लगा । अंग्रेज इसका इस्तेमाल इस देश पर अपना अधिकार जमाने के लिए करने लगे । अंग्रेजों के सामने भारतीयों की स्थिति दबे-कुचलों की तरह हो गई । उनकी गरदन साहब और मेमसाहबों और उनकी टोपी के आगे झुकी रहने लगी । हालांकि भारतीयों के एक छोटे से वर्ग ने अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा का स्वागत किया । खासकर भद्रलोक के वर्ग ने । इस भाषा की वजह से उन्हें शेष भारतीयों पर अपना रोब गालिब करने की मौका जो मिल रहा था । इस वर्ग ने इसे सांस्कृतिक प्रतिष्ठा का सवाल माना और खुद को आम लोगों से ऊपर रखा । अंग्रेजी भद्रलोक का गहना बन गई । इसका समर्थन करने वाले अंग्रेजी रहन-सहन और खाने-पीने की नकल करने लगे । जल्द ही अंग्रेजी कैरियर की भाषा बन गई । अंग्रेजों के शासन में भारत पूरी तरह उद्योगविहीन हो गया । इसलिए प्रशासनिक नौकरी भारतीयों के लिए कैरियर का एक मात्र जरिया बन गई । लिहाजा भारतीयों का एक वर्ग तेजी से इस भाषा का पक्षधर होता गया । वर्ष १९०० तक अंग्रेजी शिक्षा भारत में काफी लोकप्रिय हो गई । भारतीय राजभाषा है हिंदीहिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में १४ सितंबर १९४९ को स्वीकार किया गया इसके बाद संविधान में राजभाषा के संबंध में धारा ३४ उसे ३५२ तक की व्यवस्था की गई । इसकी स्मृतिको ताजा रखने के लिए १४ सितंबर का दिन प्रतिवर्ष “हिन्दी दिवस” के रूप में मनाया जाता है । धारा ३४३ (१) के अनुसार भारतीय संघ की राजभाषा हिंदी एवं लिपि देवनागरी है । हिंदी को राजभाषा का सम्मान कृपा पूर्वक नहीं दिया गया बल्कि यह उसका अधिकार है । महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय भाषा (राजभाषा) लक्षणों पर जो दृष्टिपात किया था वह निम्नलिखित है ः - १ * अमलदारों के लिए वह भाषा सरल होनी चाहिए । २ * उस भाषा के द्वारा भारतवर्ष का आपसी धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवहार हो सकना चाहिए । ३ * यह जरूरी है कि भारतवर्ष के बहुत से लोग उस भाषा को बोलते हैं । ४ * राष्ट्र के लिए वह भाषा आसान होनी चाहिए । ५ * उसे भाषा का विचार करते समय किसी क्षणिक या अल्पस्थायी स्थिति पर जोर नहीं देना चाहिए । स्पष्टतः उपरोक्‍त लक्षणों पर हिंदी भाषा पूर्णतः खरी उतरती है । हिंदी और ममता बनर्जी रेल मंत्री ममता बनर्जी अपने मनमानेपन और व्यक्‍तिवादिता के लिए मशहूर हैं लेकिन वे इस हद तक जाएंगी कि रेलवे की नौकरी की परीक्षा के प्रश्नपत्र सिर्फ अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं में ही देने की इजाजत देंगी, हिंदी को इससे अलग कर देंगी, इस पर विश्‍वास नहीं होता । ‘नईदुनिया’ की खबर के अनुसार अभी तक सिर्फ ग्रुप-डी की नौकरियों की परीक्षा अंग्रेजी, हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं में होती थी लेकिन अब ग्रुप-सी की नौकरियों में भी क्षेत्रीय भाषाओं में परीक्षा लेने की तैयारी है जिसकी प्रक्रिया बहुत पहले से चल रही थी । मगर ममता बनर्जी करने यह जा रही हैं कि ये परीक्षाएं गैरहिंदीभाषी राज्यों में सिर्फ अंग्रेजी तथा क्षेत्रीय भाषाओं में ली जाएं। अगर ऐसा है तो यह गंभीर बात है और उम्मीद करनी चाहिए कि मंत्रालय के नौकरशाहों की उच्चस्तरीय समिति - जिसका इस उद्देश्य से गठन किया गया है - इसकी अनुमति नहीं देंगी । हिंदी देश की राजभाषा है संवैधानिक रूप से और कोई भी मंत्री चाहे भी तो उसके साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकता । फिर ऐसा कोई बदलाव ममता बनर्जी चाहती हैं तो उन्हें मंत्रिमंडल की बैठक में यह प्रस्ताव लाना होगा । फिर देश में संसद भी हैं, अदालतें भी हैं जो ऐसा असंवैधानिक काम नहीं होने देंगी लेकिन ममता बनर्जी को यह ख्याल भी कैसे आया कि वे संविधान के विरूद्ध जा सकती हैं? निश्‍चित रूप से रेलवे के बड़े से बड़े पदों की परीक्षा भी अंग्रेजी के साथ हिंदी तथा उन समस्त क्षेत्रीय भाषाओं में होनी चाहिए जिन्हें संविधान की आठवीं अनसूची में स्थान दिया गया है । इससे किसी का कोई विरोध नहीं हो सकता बल्कि ऐसे किसी कदम की प्रशंसा ही की जानी चाहिए लेकिन हिंदी को जो दर्जा संविधान में मिला हुआ है, वह सोच-समझकर दिया गया है इसलिए किसी को भी हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं को लड़ाने की कोई व्यर्थ कोशिश नहीं करनी चाहिए । इससे किसी मंत्री का थोड़ा-बहुत फायदा हो सकता है लेकिन देश का नुकसान होगा । भाषा-विवाद अभी शांत है, भाषा को लेकर कट्टरवादिता अब पुरानी चीज हो गई है, तब ममता बनर्जी को इस विवाद को उछालना नहीं चाहिए ।
हिंदी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा है और भारत की सबसे ज्यादा बोली और समझी जानेवाली भाषा है । चीनी के बाद यह विश्‍व में सबसे अधिक बोली जानेवाली भाषा भी है । हिंदी और इसकी बोलियाँ उत्तर एवं मध्य भारत के विविध प्रान्तों में बोली जाती हैं । भारत और विदेश में ६० करोड़ (६०० मिलियन) से अधिक लोग हिंदी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं । फिजी, मॉरीशस, गयाना, सूरीनाम की अधिकांश और नेपाल की कुछ जनता हिंदी बोलती है । हिंदी राष्ट्रभाषा, राजभाषा, सम्पर्क भाषा, जनभाषा सोपानों को पारकर विश्‍वभाषा बनने की ओर अग्रसर है कि आने वाले समय में विश्‍वस्तर पर अंतरराष्ट्रीय महत्व की जो चंद भाषाएं होंगी उनमें हिंदी भी प्रमुख होगी । हिंदी एवं उर्दूभाषाविदों की राय में हिन्दी और उर्दू एक ही भाषा है । हिंदी देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं और शब्दावली के स्तर पर अधिकता हमलोग संस्कृत के शब्दों का प्रयोग करते हैं । उर्दू फारसी लिपि में लिखी जाती है और शब्दावली के स्तर पर उसपर फारसी अरबी भाषाओं का ज्यादा असर है । व्याकरणिक रूप से उर्दू और हिंदी में लगभग शत-प्रतिशत समानता है । कुछ विशेष क्षेत्रों में शब्दावली के स्त्रोत में अंतर होता है । कुछ खास ध्वनियाँ उर्दू में अरबी फारसी से ली गई है और इसी तरह फारसी और अरबी के कुछ खास व्याकरणिक संरचना भी प्रयोग की जाती है । इसलिए उर्दू को हिंदी की एक शैली माना जा सकता है । परिवार हिंदी हिन्द-यूरोपीय भाषा परिवार के अंतर्गत आती है । ये हिंदी ईरानी शाखा के हिन्द आर्य उपशाखा के अंतर्गत वर्गीकृत है । हिन्द आर्य भाषाएं वो भाषाएं हैं जो संस्कृत से उत्पन्‍न हुई हैं । उर्दू, कश्‍मीरी, बंगाली, पंजाबी, सेमानी, मराठी, नेपाली जैसी भाषाएं भी हिंद आर्य भाषाएँ हैं । हिंदी की विभिन्‍न बोलियाँ और उनका साहित्य हिंदी की विभिन्‍न बोलियाँ (उपभाषाएँ) हैं । इनमें से कुछ में अत्यंत उच्च श्रेणी के साहित्य की रचना हुई है । ऐसी बोलियों में ब्रज भाषा और अवधी प्रमुख है । यह बोलियाँ हिंदी की विविधता और उसकी शक्‍ति हैं जो हिंदी की जड़ों को और गहरा बनाती है । हिंदी की बोलियाँ और उन बोलियों की उपबोलियाँ अपने में एक बड़ी परंपरा, सभ्यता और इतिहास को समेटे हुए हैं वरन्‌ स्वतंत्रता संग्राम, जनसंघर्ष, वर्तमान के बाजारवाद के खिलाफ भी उसका रचना संसार सचेत है । हिंदी की बोलियों में प्रमुख हैं - अवधी, बृजभाषा, कन्‍नौजी, बुंदेली, बघेली, भोजपुरी, हरियाणवी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, झारखंडी, कुमाऊँनी आदि । अर्थात विभिन्‍न प्रदेशों में हिंदी के रंग-ढंग में कुछ परिवर्तन अवश्‍य दिखेगा । हिंदी भाषा का भौगोलिक विस्तार काफी दूर-दूर तक है जिसे तीन क्षेत्रों (हिंदी क्षेत्र, अन्य भाषा क्षेत्र, भारतेत क्षेत्र) में विभक्‍त किया जा सकता है ।हिंदी क्षेत्र में हिंदी की मुख्यतः सत्रह बोलियाँ बोली जाती हैं जिन्हें पाँच बोली वर्गों में इस प्रकार विभक्‍त करके रखा जा सकता है - पश्‍चिमी हिंदी, पूर्वी हिंदी, राजस्थानी हिंदी, पहाड़ी हिंदी और बिहारी हिंदी । (मैथिली, भोजपुरी मंत्र ही, अंगिला, बज्जिका ) अन्य भाषा क्षेत्र में प्रमुख बोलियाँ इस प्रकार हैं - दक्खिनी हिंदी (गुल्बर्गी, बीदरी, बीजापुरी, तथा हैदराबादी आदि) बंबईया हिंदी, कलकतिया हिंदी तथा शिलंगी हिंदी (बाजार-हिंदी) आदि । भारत के बाहर भी कई देशों में हिंदी भाषी लोग काफी बड़ी संख्या में बसे हैं । सीमावर्ती क्षेत्रों के अलावा यूरोप,अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, रूस, जापान, चीन तथा समस्त दक्षिण पूर्व व मध्य एशिया में हिंदी बोलनेवालों की बहुत बड़ी संख्या है । लगभग सभी देशों की राजधानियों के विश्‍वविद्यालयों में हिंदी एक विषय के रूप में पढ़ी-पढ़ाई जाती है । भारत के बाहर हिंदी की प्रमुख बोलियाँ- ताजुज्बेकी हिंदी, मॉरिशसी हिंदी, फीजी हिंदी, सूरीनामी हिंदी आदि हैं । हिंदी का पुस्तक व्यवसाय आज के युग में हिन्दी पुस्तक व्यवसाय इतना अधिक गिर चुका है कि पुस्तक लोग खरीद कर पढ़ना नहीं चाहते बल्कि हिन्दी के रीडरों को अच्छा वेतन मिलता है, अपने बच्चों को चन्दा मामा बाल सखा पत्रिका खरीद कर नहीं दे पाते । बच्चा यदि किसी पत्रिका की दुकान पर अड़ जाता है, पापा चन्दा मामा लेंगे, उन अच्छे बच्चों को यही कह कर बहला देते हैं, चलो हम ला देंगे । यदि अच्छे रीडरों को पेपर सेटिंग के लिये पैसे भी दिये जाते हैं तो उनको किसी कविता या लेख को अर्जित करना हो तो प्रकाशकों से पुस्तकें मांगकर पेपर सेट करते हैं, ये अच्छे रीडर बीस रूपये की पुस्तकें नहीं खरीद सकते उधार मांग कर पेपर सेट करके पुस्तकें बुक्सेलरों को वापस कर देते हैं । ऐसे में हिन्दी पुस्तक व्यवसाय धरातल में पहुँच रहा है । कुछ तो टेलीविजन भी एक कारण है । हम हिन्दी प्रांत के होकर भी ऐसा कटु अनुभव हिन्दी के प्रति हो गया है । लोगों का कहना है हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है ।
(गोपाल प्रसाद)

2 comments:

  1. ममता बैनर्जी का यह हिंदी विरोधी कदम चिंता जगाता है। देश का हित चाहनेवाले हर व्यक्ति को इसका विरोध करना चाहिए।

    यदि आपने लेख को पैराओं बांटकर पेश किया होता तो इसे पढ़ने में सहूलियत रहती। लेख में काफी बातें दुहराई भी गई हैं, इनसे भी बचा जा सकता था।

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  2. MAITHILI HINDI KI BOLI HAIN. YEH BHI EK PRAKAR SE SMRAJYVADI NEETI HI HAIN. MAIN MAMTA BANRJEE KO DHANYVAD DETA HOON JINHONE HINDI KO RAILWAY EXAM SE HATA KAR DIYA. MERE LIE ENGLISH AUR HINDI MEIN KOI BHED NHI HAIN , DONO HI DUSRE BHASHA KE AHIT MAIN SADAIV LGI RHATI HAIN.

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