“पिया कासे कहूँ मन पीर”
सुखाई गयो नयना के नीर,
पिया कासे कहूँ मन की पीर ।
घरवा बसाई पिया गइले विदेशवाँ,
चिट्ठियाँ न भेजला, न भेजला सनेशवाँ ।
रूपिया सवतिया से नेहिया लगवला,
कवने करन पिया हमें बिसरावला ॥
अब तो घरवा (अँगना) लगे जंजीर हो
पिया कासे कहूँ मन की पीर हो ।’
सुखाई गयो---------------------------
अब तो पिया अंग्रेज होई गइला,
गऊवाँ देहतवा से दूर होई गइला ।
आपन सुरतिया सपन कई दिहला,
एहि रे अभागिन क नीदिया चोरवला ॥
मति मारा करेजवाँ मे तीर हो
पिया कासे कहूँ मन की पीर हो ।
सुखाई गयो नयना-------
कइसे तूँ बाट पिया इह बतावा,
हो सके तो हमरा के तनि समझावा ।
बेकल इ मन के रहिया देखावा,
अपने चरनवाँ क दासी बनावा ।
पिता तूँ हमर तकदीर हो,
पिया कासे कहूँ मन की पीर हो ।
सुखाई गयो नयना --------
“इहवाँ क मटियाँ तूँ कहबो न भूलइयाँ,
गंगा के पनियाँ तूँ माथे चढ़ाईयाँ ।
माई की मूरतियाँ तूँ सीना से लगईयाँ,
देशवा के खातिर तूँ सब कुछ लूटईयाँ ॥
पिया होई जइबा भारत क वीर हो,
पिया कासे कहूँ मन की पीर हो ।
सुखाई गयो नयना -------------------
पं. कृष्ण मुरारी मिश्रा
ph. no. 09415008312
Wednesday, September 9, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment
I EXPECT YOUR COMMENT. IF YOU FEEL THIS BLOG IS GOOD THEN YOU MUST FORWARD IN YOUR CIRCLE.