Thursday, September 3, 2009

राष्ट्रभाषा की महत्ता


राष्ट्रभाषा के तिरस्कार का परिणाम क्या हो सकता है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हमारा पड़ोसी देश नेपाल है । नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय के पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने हिंदी में उपराष्ट्रपति पद की शपथ लेनेवाले परमानंद झा से कहा है कि वह एक हफ्ते के अंदर फिर से नेपाली भाषा में पद और गोपनीयता की शपथ ले अन्यथा उन्हें पद से हाथ धोना पड़ेगा । सर्वविदित है कि ६५ वर्षीय झा ने पिछले वर्ष हिंदी में उपराष्ट्रपति पद की शपथ लेकर खड़ा कर दिया था । न्यायालय ने प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल की गठबंधन सरकार को भी उपराष्ट्रपति के लिए नए सिरे से शपथग्रहण की व्यवस्था करने का निर्देश दिया है । तराई इलाके से ताल्लुक रखनेवाले झा ने जुलाई २००८ में उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली थी । हमारे भारत में राष्ट्रभाषा के प्रति दोयम दर्जा रखा जा रहा है जो उचित नहीं । हमें नेपाल की घटना से सीख लेनी चाहिए । केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने सभी विद्यालयों में हिंदी पढ़ाए जाने पर जोर दियाहै । उन्होंने कहा कि राष्ट्रभाषा को धाराप्रवाह ढंग से बोलने से देशभर के छात्रों को आपस में जोड़ने में मदद मिलेगी और एक बार भारत के ज्ञान सृजन करनेवाले देश के रूप में उभरने के बाद यह लोकभाषा बन जाएगी । सिबबल ने माध्यमिक शिक्षा बोर्ड परिषद की बैठक में कहा कि हमारी शिक्षा प्रणाली में एक जैसी व्यवस्था (माट्‌स) को बदलकर हाई ऑर्डर थिंकिंग स्किल्स (हाट्‌स) के रूप में परिवर्तित किए जाने की जरूरत है । अभी हम ज्ञान प्राप्त करनेवाले देश हैं लेकिन भविष्य में हमें ज्ञान का सृजन करनेवाला देश बनना चाहिए । उन्होंने कहा कि हिंदी को अन्य क्षेत्रीय भाषा के साथ पढाया जाना चाहिए । कुछ छात्र अपनी मातृभाषा में काफी अच्छे होते हैं । हिंदी के समर्थन में सिब्बल के इस बयान का स्वागत किया जाना चाहिए । आज तकनीक का झुकाव तेजी से हिंदी की तरफ बढा है । निश्‍चित रूप से हिंदी को इससे बढावा मिलेगा । हिंदी साहित्यकारों, पत्रकारों, ब्लॉगरों, विद्यार्थियों एवं शिक्षकों को हिंदी की प्रगति के लिए इंटरनेट का सहारा लेना चाहिए । बिना कंप्यूटर शिक्षा एवं ज्ञान के हम हिंदी की प्रगति नहीं कर सकते । सभी राष्ट्रवादी लोगों का कर्त्तव्य है कि वे राष्ट्रभाषा के विकास में अपना सार्थक योगदान दें । प्रिंट मीडीया में भी धीरे-धीरे हिंदी के ऑनलाईन संस्करण प्रकाशित होने शुरू हो गए हैं । हिंदुस्तान, दैनिक जागरण, नई दुनियाँ नवभारत टाईम्स राष्ट्रीय सहारा, अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका आदि के ऑनलाईन अंक धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रहे हैं । पत्रिकाओं में सरस सलिल, गृहशोभा, गृहलक्ष्मी सरिता, इंडिया टुडे, आउटबुक आदि प्रिंट के साथ-साथ ऑनलाईन संस्करण को भी बढावा दे रहे हैं । बी.बी.सी. ने भी हिंदी संस्करण प्रकाशित कर सराहनीय कार्य किया है । प्रसिद्ध सर्च इंजन गूगल ने हिंदी में भी अपनी सेवा उअपल्ब्ध करा दी है । नर,अदा क्रिएटिव प्रा. लि. द्वारा प्रकाशित हिंदी ऑनलाईन पत्रिका “समय दर्पण” ने वैचारिक क्रांति की ओर अग्रसर होने को कारगर कर दिखाया है । समय दर्पण ने हिंदी पाठकों लेखकों एवं समर्थकों के लिए वृहद प्लेटफॉर्म का निर्माण कर हिंदी सेवा के प्रति संकल्पित है । नई तकनीक के आविष्कार यूनीकोड के माध्यम से आप कंप्यूटर के कीबोर्ड पर अंग्रेजी में टाइप करें और उसका प्रिंट हिंदी में निकलेगा इससे हिंदी में प्रकाशन काफी सुविधाजनक हो गया है । जैसे-जैसे तकनीक की वृद्धि हो रही है, जागरूकता बढ़ रही है, वैसे वैसे हिंदी भी छलांगे लगा रही है । हिंदी चिंतकों व हिंदी समर्थकों ने सोशल नेटवर्किंग साइटों पर अनेक कम्युनिटी बनाकर लामबंदी का काम शुरू कर दिया है । अंग्रेजी के आभामंडल को कम कर हिंदी को व्यापकता दिलाने के प्रयास की दशा और दिशा पर सार्थक बहस शुरू हो चली है जबकि हिंदी कोयले के आग की तरह/ बिना हिंदी के हम जन-जन से इस देश में नहीं जुड़ सकते हैं । भारत के वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने पिछले दिनों कहा था कि “चूँकि मुझे हिंदी नहीं आती, इसलिए मैं प्रधानमंत्री नहीं बन सकता । ” उनका यह बयान राष्ट्रभाषा के महत्व को दर्शाता है । उपराज्यपाल तेजेन्द्र खन्‍ना ने हिंदी भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में पाँच व्यंग्यकारों को पुरस्कार प्रदान किए । हिंदी दशोत्तर ओम द्विवेदी, धनश्याम कुमार देवांश और मिथिलेश कुमार को पुरस्कृत किया गया । साहित्यिक पत्रिका “साहित्य अमृत” की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में उपराज्यपाल ने कहा कि व्यंग्य लेखक के माध्यम से समाज के यथार्थ को उजागर करते हैं और वह खुद भी व्यंग्य को पढना पसंद करते हैं । व्यंग्य के माध्यम से आनेवाले समय में हिन्दी की लोकप्रियता में उत्तरोत्तर वृद्धि ही होगी। गैर हिंदी भाषियों में हिंदी की लोकप्रियता बढाने हेतु केन्द्रीय हिंदी निदेशालय महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है । साहित्य अकादमी, हिंदी अकादमी ने सभी राज्यों में हिंदी कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना शुरू किया है । हिंदी के प्रकाशक लाभ कमा रहे हैं । पुस्तक विक्रेताओं के अनुसार हिंदी का क्रेज इन दिनों काफी बढ रहा है । विश्‍व स्तर की किताबों के हिंदी अनुवाद धूम मचा रहे हैं । अमर्त्य सेन, अरविंद अडिग, नंदन नीलेकणी, शेक्सपीयर, हैरी पॉटर के हिंदी अनुवाद की बिक्री सर्वाधिखै । साहित्य अकादमी की योजना में अन्य भाषाओं के सर्वाधिक लोकप्रिय एवं पुरस्कार पुस्तकों के हिंदी अनुवाद उपलब्ध कराना भी है । दिल्ली में हिंदी, उर्दू, पंजाबी, सिंधी, के अलावे मैथिली-भोजपुरी अकादमी की भी स्थापना हुई है । हिंदी को सशक्‍त बनाने में मातृभाषाओं का भी कम योगदान नहीं है । अलग-अलग मातृभाषाओं के रचनाकार अप्रत्यक्ष रूप से अनुवाद के माध्यम द्वारा राष्ट्र को अपनी सोंच व सृजन का लाभ दे पा रहे हैं । आज शिक्षकों की भी जिम्मेवारी है कि हिंदी में अपने विद्यार्थियों को निपुण बनाएँ क्योंकि अंग्रेजियत के लबादे ओढकर केवल कोरम पूरा करने से हिंदी और हिंदुस्तान का भला नहीं होनेवाला है । हिंदीभाषियों की सुविधा के लिए ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने नई पहल शुरू की है । अथॉरिटी की वेबसाइट को अब अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी ( www.greaternoidaauthority.in) में भी देखा जा सकता है । हालॉकि अभी इसे प्रायोगिक रूप में शुरू किया गयाहै । अधिकारियों का कहना है कि हिंदी पढ़ने-लिखने वाला गाँव का किसान भी ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी की हिंदी वेबसाइट पर लॉग ऑन कर जानकारी ले सकेगा । इस पर शहर के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी गई हैं । अभी तक यह जानकारी अंग्रेजी में ही दी जाती है । हिंदीवाली वेबसाईट खोलने के लिए अंग्रेजी भाषावाली वेबसाइट के उपरी होने पर लेफ्ट साइड में लिंक दिया गया है । इस पर क्लिक करते ही हिंदी में वेबसाईट खुल जाएगी । अथॉरिटी अफसरों के अनुसार प्रयोग सफल होने पर इसमें और भी जानकारियाँ डाउनलोड एवं समय-समय पर इसे अपडेट किया जाएगा । अपनी शिकायतें दर्ज कराने के लिए अब गाँवों के किसानों को अथॉरिटी की बेवसाइट से ही सूचनाएँ ले सकेंगे और पनी शिकायतें या सुझाव भी दे सकेंगे । इस प्रक्रिया में उन्हें भाषा की दिक्‍कत बिल्कुल नहीं होगी क्योंकि सभी जानकारी उन्हें अब हिंदी में भी मिलेगी । उपरोक्‍त उदाहरण का प्रयोग आज सभी विभागों की वेबसाइटों पर की जाने की आवश्यकता है । हिंदी प्रेमियों का कर्तव्य है कि वे हिंदी भाषा को लोकप्रिय एवं सार्थक बनाकर जन-जन से जोड़ने हेतु माँग मजबूती से रखें तभी सच्चे अर्थ में राष्ट्रभाषा को सम्मान मिल पाएगा । केवल हिंदी दिवस के अवसर पर समारोह करने से हिंदी का भला नहीं होनेवाला । “मुमकिन है सफर हो आसाँ अब साथ भी चलकर देखें कुछ तुम भी बदलकर देखो,कुछ हम भी बदलकर देखें । ”
(गोपाल प्रसाद)

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