Thursday, September 3, 2009

आजादी के ६२ वर्ष का आकलन

आजादी के ६२ वर्ष का आकलन तो हम करेंगे ही परन्तु सर्वप्रथम हमें अपनी गुलामी के समय का आकलन करना पड़ेगा । वास्तविकता तो यह है हम भारतवासी १००० वर्षों तक गुलाम रहे । पृथ्वीराज चौहान के पराजय के पश्‍चात्‌ हम भारतवासी गुलाम होकर ही रह गए । भारत के ज्यादातर हिस्सों पर मुस्लिम आक्रांतियों ने अधिकार कर लिया । हम छोटी-छोटी ताकतो में विभाजित रहे । भारत को गुलाम बनाने में कन्‍नौज के राजा जयचंद का नाम प्रथम है जिसने विदेशी आक्रांता मोहम्मद गोरी को भारत पर आक्रमण का आमंत्रण भेजा । गुलामी की जंजीरों ने हमें ऐसा जकड़ा कि हम अपनी ओज, शक्‍ति, वीरता, गौरव को इतिहास की बातें मानने लगे । पराधीनता को अपना भाग्य मान लिया । बिल्ली के घर पर आक्रमण होगा तो वो भी प्रतिकार करेगी परंतु हमलोगों ने क्या किया? इतना बड़ा देश पूर्ण प्रतिकार (क्यों नहीं?) भारतवर्ष के स्वर्णिम काल पर अंधकार काल की छाया क्यों पड़ी? भारतीय सामाजिक व्यवस्था चार वर्ण पर आधारित है । वैदिक व्यवस्थानुसार यह कर्म के सामाजिक चार वर्ण थे । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र । वैसे पूरा विश्‍व इसी व्यवस्था पर चल रहा है । पश्‍चिमी देशों में व्यवस्था कर्मानुसार है । परंतु कपटी, लालची लोगों ने इसे जन्म की वर्णव्यवस्था में व्यक्‍त किया । अगर आप स्वर्णकालीन भारत में जाँय तो पाएंगे कि कर्म ही वर्ण था न कि जन्म । चन्द्रगुप्त मौर्य जो जन्म अनुसार वैश्य थे परन्तु कर्म के अनुसार वे क्षत्रिय थे तभी महान चाणक्य ने उन्हें भारत का सम्राट चुना । अगर सही आकलन किया जाय तो भारतवर्ष तभी महान शक्‍ति बना जब वैश्य क्षत्रिय और शूद्र क्षत्रिय सबों की सम्मिलित शक्‍ति एक हुई । भगवान श्रीकृष्ण भी वैश्य वर्ण क्षत्रिय थे । मनुस्मृति की विकृति ने वर्णव्यवस्था को जन्म व्यवस्था में परिणत कर उसे सामाजिक व्यवस्था जिससे देश चलता था, राष्ट्र संचालित होता था, उसे ही पंगु कर दिया । देश की उर्वरा शक्‍ति ही बांझ बना दी गई । फिर शुरू हुआ भारत का सामाजिक क्षरण, सांस्कृतिक टूटन । एक तरफ अधिसंख्यक जनता को वैश्य, शूद्र में परिभाषित कर उनके आत्मिक गौरव पर हमला हुआ । उनकी ओजशक्‍ति जो राष्ट्रशक्‍ति थी उसे तोड़ दिया गया अपनी धरती अपना है वतन, परन्तु आन-बान कुछ भी नहीं । तुम हमसे छोटे हो चूँकि तुमने वैश्य में जन्म लिया, तुम ओछे हो, तुम्हें छू लेना भी पाप है चूँकि तुम शूद्र हो । तुम मंदिरों में नहीं जा सकते । सनातन धर्मी होते हुए भी तुम मंदिरों में नहीं जा सकते, देवता अपवित्र हो जाएंगे । भारत पर हमले दर हमले राष्ट्रीयता के अभाव में धर्म परिवर्तन हुआ । अनेक शूद्र धर्मपरिवर्तन कर मुसलमान बन गए । भारत के ज्यादातर बुनकरों ने इज्जत और संरक्षण के लिए इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिए । कालान्तर में मुस्लिम भी हिंदुस्तानी समाज के अंग होते चले गए । फिर मुगल वंश का पतन हो गया। अंग्रेजों ने धीरे-धीरे पूरे देश पर कब्जा कर लिया भारत की जनता में एक राष्ट्र सोंच की जगह विभिन्‍न राष्ट्रों की संकीर्ण मानसिकता घर कर गई थी । सन्‌ १८५७ में प्रथम क्रांति हुई जिसमें हिंदू और मुस्लिम ने शिरकत की परंतु एक राष्ट्रीयता के विचार में क्रांति बिखर गई । अंग्रेजों का दबदबा और भी बढ़ गया । सख्त कानून बने । समय-समय कुछ लोगों ने क्रांति का अलख जगाया । जनता में एकता, जागृति लाने का आंदोलन जारी रखा जैसे लोकमान्य तिलक, बालकृष्ण गोखले, लाला लाजपतराय इत्यादि । महात्मा गाँधी ने क्रांति से पूर्व साउथ अफ्रीका में अंग्रेजों को समझा, अपने देश को समझा और उस जनता में क्रांति के कण फूकें, वो बहुसंख्यक जनता जो विभिन्‍न समाज की कुकृत्य के कारण राष्ट्र की मुख्यधारा से अलग थे । जनता राष्ट्र की फौज होती है । फौज नहीं लड़ेगी तो देश तो गुलाम रहेगा ही । हरिजन का नारा देकर महात्मा गाँधी ने गुलामी की असल वजह मनुस्मृति की विकृत सदियों से गुलामी की जंजीर को तोड़ने की शुरूआत की । देश की क्रांति के लिए बहुसंख्यक जनता में आत्मगौरव, राष्ट्रीयता भरा । महात्मा गाँधी ने उस जनता को ललकारा जो सदियों से सोई थी । “अपनी धरती अपना है वतन, भारतवर्ष हमारा है, अंग्रेजों भारत छोड़ो । नेहरू, आजाद, पटेल अनेक अनुयायियों के साथ रहे । नेहरूजी को खुद को उनका पुत्र कहते थे । १५ अगस्त १९४७ को देश आजाद हुआ और आज ६२ साल गुजर गए । जब हम आजाद हो जाएंगे, गाँव-गाँव का विकास होगा । जिन आदर्शों को सामने रखकर क्रांति की आजादी पाई क्या वो पूरा हुआ?आजादी के ६२ साल बाद याद आती विंस्टन चर्चिल ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री ने ब्रिटिश संसद में कहा था ‘ हम अंग्रेज तो खून चूसते हैं परन्तु अगर हम इन्हें आजाद कर देंगे तो ये लोग तो जनता का माँस मज्जा भी खा जाएंगे । नैतिकता, ईमानदारी, संस्कृति, मर्यादा, सच्चाई, कर्त्तव्य परायणता सभी तो समाप्त सा दिखता है । भारत आजाद परन्तु कानून, पुलिस सभी कुछ वैसा जैसा अंग्रेजों ने १८५७ की क्रांति को कुचलने के बाद बनाया था । हमारे देश में आज भी कुछ सुधार के बावजूद वही काला कानून चल रहा है जो गुलाम जनता पर अत्याचार के लिए बनाई गई थी । यानी आजादी के बाद भी हमारे पुलिसवाले अफसरान वही कानून चला रहे हैं, वही बर्ताव कर रहे हैं जो गुलामी की वजह से जनता का नसीब था? क्या यही है आजादी ? क्या यही है आजादी जहाँ आम जनता आज भी अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रही है । कल अंग्रेज थे आज अपने देशवाले । नौकरशाह और सरकारी कर्मचारी अपने को शासनकर्ता समझते हैं । आर्थिक विकास देखकर यही लगता है कि आजादी के ६२ साल बाद भी जनता गरीब क्यों? क्योंकि तुमने आजादी के दृष्टा की बात नहीं मानी नए युग के चाणक्य महात्मा गाँधी ने देश के विकास की योजनाएं बनाई थीं, परन्तु भारत की आजादी के बाद उनकी आर्थिक निर्माण के स्वर्णिम आविष्कार योजनाओं का उनके अनुयायियों द्वारा कार्यान्वित नहीं करने से देश का कितना नुकसान हो गया । गाँवों का विकास, उद्योगों का विकेन्द्रीकरण जैसे मूल मंत्र छोड़ राष्ट्र को गरीबी, अंधकार मे फेंक देने समान अपराध है । कश्मीर जो स्वर्ग था, वह समस्या में तब्दील हो गया । लाखों कश्मीरी पंडितों का अपने वतन से पलायन मुस्लिम आतंक की वजह से देश के रहनुमा खामोश क्यों हैं? राष्ट्र है तभी सत्ता है, इस बात को क्यों भूलते हैं लोग । आजादी के ६२ साल बाद भी एक कृषिप्रधान देश के किसान आत्महत्या कर रहे हैं । सरकार की गलत नीतियों का परिणाम है यह सब । शिक्षानीति आज भी है वही जो लॉर्ड मैकाले ने बनाया । आखिर हम उस शिक्षानीति को क्यों नहीं अपना सकते जिसकी वजह से देश-विदेश से विद्यार्थी भारतवर्ष के तक्षशिलाऔर नालंदा विश्‍वविद्यालय में पढ़ने आते थे । गलत शिक्षा नीति ने आजादी ३०-३५ साल में कलर्कों का निर्माण हुआ । यूपी, बिहार, पंजाब, हरियाणा ज्यादातर हिंदी भाषी राज्यों में ज्ञान की चोरी करने की कोशिश? खूब नकल हुई, खुलेआम हुई, बेशर्मी से हुई परन्तु क्या ज्ञान की चोरी हो सकती है? कदाचित नहीं चोरी की परीक्षा से ज्ञान तो नहीं मिला आयोग्य, अज्ञानियों ने अव्वल नंबर जरूर प्राप्त कर लिया । फिर वही कपटी और लालची लोग सरकारी नौकरियों में स्थापित हो गए लेकिन जरा सोचिए देश के हर सरकारी विभाग में ऐसे कर्मचारियों का बोलबाला है तब देश का निर्माण क्या होगा? उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण भारत का विकास हर क्षेत्र में ज्यादा अच्छा रहा । विकेन्द्रीकरण जो विकास की धुरी है, महात्मा गाँधी इसी नीति पर देश को ले जाना चाहते थे । सरकार ने विपरीत दिशा केन्द्रीकरण की नीति को बढ़ाया । बैंको का राष्ट्रीकरण हुआ । बड़े उद्योगों को बढ़ावा दिया गया परन्तु देश की अर्थव्यवस्था का आधार कुटीर उद्योग का विनाश क्यों कर दिया गया? गांधी कहते थे - कील, कुदाल, फावड़े, कुछ वस्त्र विशेष जरूरत की छोटी चीजों का निर्माण बड़े उद्योग नहीं करेंगे, उनका निर्माण कुटीर उद्योग में होगा और पैसा गाँव में जाएगा परन्तु ठीक इसके नीति के विरूद्ध सरकार ने कुटीर उद्योगों को तहस-नहस कर सालों साल गरीबी हटाओ नारे देकर वोट लेती रही । इंदिरा आवास, जवाहर रोजगार जैसे अनेक योजनाएं हजारों लाखों करोड़ों का सरकारी खर्च परन्तु योजनाओं का लाभ जनता को नहीं मिला । स्व. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने कहा था “ विकास मद का १०% ही जनता को प्राप्त होता है । यानी देश का प्रधानमंत्री खुद स्वीकार करता है कि विकास योजनाओं का ९०% रूपया सरकार चलाने वाले अफसर, कर्मचारी, राजनीतिज्ञ खा जाते हैं । सीमा पर युद्ध हुए । अनेक वीरों ने कुर्बानी दी । सरकार ने शहीदों के मरणोपरांत उनके आश्रितों के लिए अनेक घोषणाएँ कीं । पेट्रोल पंप देने की भी घोषणाएँ हुईं । लोग दौड़ते रहे, सरकारी अफसर, कर्मचारी, सरकरी बाबू शहीद की शहादत के मुआवजे में भी अपनी पूरी हिस्सेदारी बेशर्मी से माँगते देखे गए । ये कैसी सरकार, कैसी व्यवस्था, कैसा निजाम जो देश पर शहादत देनेवालों के लिए भी अविलंब व्यवस्था नहीं कर पाई । शर्म है हमारी सरकारी व्यवस्था पर । नेहरूजी के देहांत के बाद हमने वीर प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री मिले । “जय जवान जय किसान” की व्यापक सोंच, सच्चाई, कर्त्तव्यपरायणता के उदाहरण थे वे । उनके कार्यकाल में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया । भारत ने भारी विजय प्राप्त की । संधि वार्ता के लिए उन्हें ताशकंद बुलाया गया । उनकी ताशकंद में रहस्यमय मौत हो गई । प्रधानमंत्री का शव हिंदुस्तान लाया गया और दाहसंस्कार कर दिया गया । मौत के रहस्य पर पर्दा रहा । आजादी के ६२ वर्ष बाद जब जनता को सूचना प्राप्त करने का अधिकार मिला तब उनके पुत्र सुनील शास्त्री ने उनके मौत की फाईल को उजागर करने को कहा ।भारत की वर्तमान सरकार कहती है कि स्वर्गीय पूर्व प्रधानमंत्री की मुत्यु की फाइल खोने से हमारे विदेश संबंध प्रभावित हो सकते हैं । सरकार का यह बयान तो और असमंजस पैदा करता है । यह कैसा प्रजातंत्र है । पूर्व प्रधानमंत्री के मुत्यु की फाइल को उजागर नहीं करना क्या सिद्ध करता है? अगर इस रहस्य को खोलने से कोई विदेशी ताकत नंगी होती है तो हो, सच्चाई देश की जनता के सामने लाना चाहिए । यह कैसी विदेश नीति यह कैसा ब्लैकमेल है जिससे सरकार डर रही है? अपने पूर्व प्रधानमंत्री के साथ हुई घटना को देश की जनता के सामने लाने से इनकार करती है, यह आखिर कैसी सरकार है? आखिर यह कैसा प्रजातंत्र? कैसी आजादी? विदेश नीति के मामले में हमने हमेशा मात खाई । प्रधानमंत्री नेहरू, इंदिराजी, वाजपेयी से मनमोहन सिंहजी तक पता नहीं किस सोच के शिकार हैं? आखिर आजादी के बाद देश की कोई भी सरकार यह नहीं समझ पाई कि देश गुलाम क्यों बना?मोहम्मद गोरी का इतिहास हम भूल गए हैं । गोरी १३ बार पृथ्वीराज चौहान से हारा और माफी माँगकर घुटता रहा । १४ वें बार पृथ्वीराज की हार हुई तब गोरी ने पृथ्वीराज को माफ नहीं किया बल्कि गुलाम बनकर ले गया । ऐसे अनेक उदाहरण हैं तैमूरलंग, नादिरशाह, अहमदशाह अब्दाली । पाकिस्तान उसी नीति पर चल रहाहै । पाकिस्तान दिल्ली के लालकिला पर इस्लाम का हरा झंडा फहराना चाहता है । चीन हमेशा भारत में गुप्त पैठ करता रहता है और भारतीय जमीन पर भी कब्जा कर रहा है । भारत चुपचाप देखता रहता है । चीन ने अरूणाचल प्रदेश पर अपना दावा कर चुका है । भारतीय सीमा तक रोड पेकिंग से जुड़ गया है । भारत सरकार चीन से डरी सी दिखती है आखिर क्यों? चीन से डरकर हमने तिब्बत को चीन का हिस्सा कहने लगे जबकि तिब्बत हमेशा स्वतंत्र देश था । १९७१ में बंग्लादेश का निर्माण हुआ । ९०००० पाकिस्तानी सैनिकों ने भारत के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया । शिमला समझौता हुआ । पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री भुट्‌टो हारे हुए देश की प्रतिनिधि, फिर भी कूटनीति में हमसे आगे । “कश्मीर समस्या के समाधान पर भविष्य में वार्ता करेंगे ।”इस एक वाक्य से हम जीती हुई बाजी हार गए । वाजपेयी तो अतिउत्साह में बस से लाहौर पहुँच गए । भारी भूल कारगिल का युद्ध, हजारों जवान शहीद हो गए । इतने प्रयोग के बाद मनमोहनजी उसी रास्ते चल पड़े । आतंकवाद को अलग कर और मुद्‌दों पर बात होगी । भले पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी हम पर बम बरसाए, खून की होली खेले । मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हैं, उन्हें भी पुराना प्रयोग करने की छूट देनी चाहिए भले निर्दोष जनता मरती रहे । जिस देश में चाणक्य जैसे राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ देशभक्‍त के विचार ने समस्त विश्‍व की राजनीति को प्रभावित किया उसे देश के इतने कमजोर शासक क्यों??? पाकिस्तानी फौज ने भारत पर आक्रमण अनेक बार किए, भले वह डरता रहा हो । पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद द्वारा संसद पर हमला, मुंबई ट्रेन ब्लास्ट, सीरियल बम विस्फोट, हमारे लोग मरते रहे, सरकार आतंकवाद की निंदा करती रही, पाकिस्तान से पूछताछ करती रही । २६.११.०८ मुंबई पर पाकिस्तान प्रत्योजित आतंकवाद का चरम भारत की अस्मिता लहूलुहान हो गई । इतना बड़ा आक्रमण हुआ परन्तु देश की सरकार, गुप्तचर विभाग, आईवी, रॉ. पुलिस किसी को पता तक नहीं चला । ९/११ को अमेरिका पर आतंकवादी हमला हुआ । परन्तु अमेरिका की सरकार ऐसी चेती की वहाँ दुबारा आतंकवादी हमला होना दुश्कर हो गया है । हिंदुस्तान में क्या कमी है? हम अपनी जनता को सुरक्षा का अभेद्य दुर्ग नहीं दे सकते । सरकार कर सकती है परन्तु करती नहीं । हमारे देश में अभी इंसानी जिंदगी को ज्यादा महत्व नहीं दी जाती है । वही अमेरिका, इजराईल, इंग्लैंड और अन्य पश्‍चिमी देश अपने एक-एक नागरिक का जीवन अमूल्य समझती है । हिंदू मुसलमान दोनों समान रूप से इस देश में रहते हैं परन्तु मुस्लिम समाज अशिक्षा और गरीबी में है । सरकार का ध्यान उनमें शिक्षा देना, दरिद्रता दूर करने पर नहीं है । ध्यान है उनकी धार्मिक भावना उभारकर वोट की रोटी सेंकना और सत्ता में बने रहना ।इसलिए अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के नाम पर देश की आजादी और इज्जत से खेलने का लाइसेंस सरकार को नहीं है । देश में हिंदू-मुस्लिम दोनों रहते हैं । आतंकवाद कोई भी करे वो गलत है परन्तु आतंकवाद मुस्लिम आतंकवाद की तुलना हिंदू आतंकवाद से करना सरकार का शुतुर्मुर्ग की तरह रेत में मुँह घुसाना एवं सच्चाई से मुँह मोड़ना है । संगठित अपराध, आतंकवाद ये पूरी दुनिया में मुस्लिम समाज ही फैला रहा है । शिक्षित देशभक्‍त मुस्लिम इस बात को समझकर भी चुप रहते हैं, बोलते नहीं । जिस तरह से सिक्खों ने आतंकवादी बन अपने को बदनाम किया, वर्षों तक उसका खामियाजा भी भुगता । उसी तरह खुद मुस्लिम समाज को मुस्लिम आतंकवाद का विरोध करना पड़ेगा तभी मुस्लिम आतंकवाद रूकेगा । महात्मा गाँधी ने आजादी के बाद कहा था कांग्रेस पार्टी का विघटन कर देना चाहिए क्योंकि अवसरवादी, सत्तालोलुप कपटी लोग भर गए हैं । जनता द्वारा नई राजनीतिक पार्टी का गठ होना चाहिए परन्तु दुर्भाग्य देश का गाँधी हमारे बीच नहीं रहे । उनके अनुयायी ने आजादी उनके नेतृत्व और आदर्शों पर प्राप्त कर महात्मा के स्वर्णिम राष्ट्र की विकास योजनाओं को रद्दी की टोकरी में फेंक देश को अंधकार और गरीबी में फेंक दिया । आजादी के ६२ वर्ष बाद भी भारतवर्ष की जनता रोटी, कपड़ा और मकान के चक्रव्यूह में फँसी है । निदान का विकल्प नहीं दिखता । अब वक्‍त है जब जनता को स्वयं देश का निर्माण करना पड़ेगा । राममनोहर लोहिया ने कहा था- “ स्वस्थ प्रजातंत्र में जनता पाँच साल इंतजार नहीं करती, क्रांति करती है । ”
रवि, कुमार पटवा ( फिल्म निर्देशक एवं लेखक, मुंबई)

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