अपने भविष्य की इबारत लिखते हुए समीना के हाथ अब नहीं कांपते । सुनहरे अक्षरों में उसका भविष्य चमचमाता नजर आता है । ग्राफिक डिजाइनिंग का कोर्स भले ही दूसरे बच्चों के लिए एक सामान्य-सी बात हो, लेकिन समीना के लिए यह आने वाले कल का सपना है ।
समीना जैसी बच्चियों के लिए ग्राफिक डिजाइनिंग का यह कोर्स क्यों इतना महत्वपूर्ण है, यह समझने के लिए सच्चर समिति की रिपोर्ट को देखा जा सकता है । समिति की सिफारिशों में कहा गया है कि मुस्लिम समाज में ६से १४ साल के बीच के २५ प्रतिशत बच्चों ने या तो कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा या उन्होंने किसी न किसी वजह से स्कूल की पढ़ाई अधूरी छोड़ दी । समीना भी ऐसी ही एक बच्ची है, जिसने सातवीं के बाद स्कूल छोड़ दिया था । पर अब वह वेलकम, दिल्ली में स्थित मदरसा जीनतुल कुरान में ग्राफिक डिजाइनिंग का कोर्स कर रही है और सोचती है कि एक दिन अपने पैरों पर खड़ी हो सकेगी ।
कभी सिर्फ धार्मिक शिक्षा देने के लिए बनाए गए मदरसों ने अब समय के अनुसार चलना शुरू कर दिया है । देश में ऐसे कई मदरसे हैं, जो शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक तालीम भी दे रहे हैं । मदरसा जीनतुल कुरान भी ऐसे ही कर रहा है । यहां उर्दू, अरबी में ग्राफिक डिजाइनिंग के अलावा डेस्कटॉप पब्लिशिंग भी सिखाई जाती है । लड़कियों को सिखाने के लिए महिला अध्यापिकाएं हैं, जिसकी वजह से परंपरागत परिवारों के लिए अपनी लड़कियों को यहां भेजना मुश्किल नहीं होता ।
समीना कहती हैं, ‘महिला अध्यापिकाओं की वजह से ही मेरे अब्बा इस बात के लिए तैयार हुए कि मैं यहां आकर ग्राफिक डिजाइनिंग का कोर्स करूं, हालांकि उन्होंने अच्छी पढ़ाई करने के बावजूद मुझे सातवीं के बाद स्कूल से हटा दिया था । ’ वैसे लड़कियों के लिए तालीम का मतलब सिर्फ करियर बनाना नहीं है । उन्हें आज के समाज में खुद की पहचान बनाने के लिए भी पढ़ाई करनी चाहिए । जामिया मिल्लिया इस्लामिया से ग्रेजुएशम करने वाली मेहरून्निसा कहती हैं, ‘मैं मानती हूं कि अच्छी तालीम लेने से हम दुनिया को सही नजरिए से देख सकते हैं । यह किसी भी लड़की के लिए जरूरी है । लड़कियां परिवार की धुरी होती हैं । अगर वे पढ़ी-लिखी होंगी तो परिवार की तरक्की होगी । ’
मजहब और रवायत से आगे बढ़ कर भी जाना चाहिए । टीवी ऐक्ट्रेस निगार जेड खान कहती हैं, ‘जब आप एक बड़े दायरे में जाते हैं तो कई बार आपसे कोई यह नहीं पूछता कि आपका मजहब क्या है । तब आपकी काबिलियत देखी जाती है । अगर लड़कियों को अच्छी तालीम नहीं मिलेगी तो वे काबिल नहीं होंगी । फिर दुनिया के सामने टिकने की हिम्मत भी उनमें नहीं आएगी । ’ आंकडे कहते हैं कि मुसलमानों में साक्षरता दर ५९.१ प्रतिशत है । यह दर भी प्राथमिक शिक्षा तक सीमित है । उच्च शिक्षा के लिहाज से देखा जाए तो सिर्फ चार प्रतिशत मुसलमान युवा ही ग्रेजुएशन या दूसरे प्रोफेशनल कोर्स करते हैं ।
इस दिशा में मदरसा जीनतुल कुरान की मिसाल दी जा सकती है । इसके प्रमुख मुहम्मद सलीम अंसारी कहते हैं, ‘कम साधनों के बावजूद हम कोशिश करते हैं कि बच्चों को कोई परेशानी न हो । वे पूरी तालीम ले सकें । ’ वैसे मदरसा पांचवीं तक की तालीम भी बच्च्चों को मुहैया करता है ।
- मानस
Monday, November 2, 2009
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