Friday, November 6, 2009

अप्रवासी भारतीय वेंकटरमण को रसायनशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार

वेंकटरमन रामचंदन नोबेल से सम्मानित होनेवाले सातवें भारतीय हैं । वास्तव में इससे भारत गौरवान्वित हुआ है । उल्लास में उनका बड़ौदा वि. वि. भी है । वैसे यह गलत चलन है कि काम का महत्व पुरस्कारों से तय होता है । खुद उनके कार्य (अनेक लाइलाज बीमारियों का निदान), उनसे जुड़े वैज्ञानिकों एवं उनके साथ सम्मानित अदा योनोथ व थामस स्टीज को लख-लख बधाई ।
भले ही वह बहुत पहले अमेरिका में बस गए लेकिन रसायन विज्ञान के लिए भारतीय अमेरिकी वैंकटरमन रामाकृष्णन को नोबेल पुरस्कार मिलने की घोषणा ने करोड़ों भारतीयों को गौरवान्वित कर दिया । कोशिकीय तंत्र में प्रोटीन की रचना करने वाले अंगक राइबोजोम पर उल्लेखनीय अनुसंधान कार्य के लिए यह पुरस्कार मिला ।
मंदिरों के शहर तमिलनाडु के चिदंबरम में १९५२ में जन्में ५७ वर्षीय रामाकृष्णन ऐसे सातवें भारतीय या भारतीय मूल के व्यक्‍ति हैं जिन्हें इस प्रतिष्ठित सम्मान के लिए चुना गया है । रामाकृष्णन्‌ ने गुजरात के बड़ौदा वि. वि. से १९७१ में विज्ञान में स्नातक की उपाधि हासिल की और फिर उच्चतर अध्ययन के लिए अमेरिका चले गए । बाद में वह पूरी तरह अमेरिका में बस गए और उन्होंने वहाँ की नागरिकता हासिल कर ली । अमेरिका के ओहायो वि. वि. से उन्होंने भौतिकी में पीएचडी की उपाधि हासिल की और बाद में अमेरिका में कैलिफोर्निया वि.वि. में उन्होंने १९७६ से १९७८ तक परास्नातक के रूप में शोध कार्य किया ।
विश्‍वविद्यालय में अनुसंधान कार्य के दौरान रामाकृष्णन ने प्रतिष्ठित जैव रसायन वैज्ञानिक डॉ. मारीसियो मोंटरल के अंतर्गत काम किया । इसके बाद उन्होंने भौतिकी से जीव विज्ञान के क्षेत्र में आने का फैसला किया । इसके लिए उन्होंने दो साल तक जीवविज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य किया । फिर उन्होंने येल वि.वि. में परास्नातक के रूप में ई. कोलाई वैक्टीरिया केराइबोजोम के छोटे घटक के न्यूट्रॉन प्रकीर्णन पर काम करना शुरू किया । तब से वह राइबोजोम की संरचना का अध्ययन कर रहे हैं । इस समय रामाकृष्ण कैम्ब्रिज वि.वि. में आणविक जीव विज्ञान की एम‍आरसी प्रयोगशाला में एक वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं । उन्होंने कई शैक्षणिक पत्रिकाओं में महत्वपूर्ण अनुसंधानपरक पत्र लिखे हैं ।
क्या है विधि?
एक्स-रे क्रिस्टेलोग्राफी तकनीक की मदद से राइबोसोम में मौजूदा करोड़ों परमाणुओं की पोजीशन का पता लगाने में सफलता पाई । १९८० व १९९० में बने इनके त्रिआयामी मॉडलों से वैज्ञानिक जान पाए कि राइबोसोम कैसे डीएनए के अनुवांशिक कोड पहचान कर प्रोटीन तैयार करता है जिससे बायो केमिकल प्रक्रिया शुरू होती है ।
क्या लाभ होगा?
उनकी इस उपलब्धि से नए कारगर एंटीबायोटिक्स (रोग प्रतिरोधक) विकसित करने में मदद मिलेगी । एंटीबायोटिक्स हानिकारक बैक्टीरिया को खत्म करने और उनका विकास रोकने का काम करते हैं ।

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