Monday, November 2, 2009

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस :क्रांतिकारियों के नायक की संक्षिप्त जीवनी

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस क्रांतिकारियों के नायक की संक्षिप्त जीवनी

सन्‌ 1920 - आई. सी. एस. से त्यागपत्र ।
सन्‌ 1924 - गिरफ्तारी मांडले जेल में प्रवास ।
सन्‌ 1927 - काँग्रेस आन्दोलन के मंच से सीधी कार्यवाही का प्रयास ।
सन्‌ 1933 - यूरोप में भारतीय पक्ष का प्रचार ।
सन्‌ 1941 - ग्रेट एस्केप ।
सन्‌ 1943 आजाद हिन्द फौज व अन्तिम सरकार का गठन ।
सन्‌ 1945 - भारत को मुक्‍त कराने के लिए आक्रमण, चलो दिल्ली चलो का आह्‌वान ।
मंत्री, संत्री, अधिकारी, बुद्धिजीवी सभी क्यों सो रहे हैं?

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के चित्रों को सरकारी कार्यालय आदि स्थानों पर लगाये जाने पर पाबन्दी क्यों लगाई गयी? यह पाबन्दी भारत सरकार की सहमति पर बम्बई सरकार ने ११ फरवरी १९४९ को गुप्त आदेश संख्या नं० 155211 के अनुसार प्रधान कार्यालय बम्बई उप-क्षेत्र कुलाबा-६ द्वारा लगाई गई ।
नेताजी को अन्तर्राष्ट्रीय युद्ध अपराधी भारतीय नेताओं ने क्यों स्वीकार किया? अन्तर्राष्ट्रीय अपराधी गुप्त फाईल नं० 10(INA) क्रमांक २७९ के अनुसार नेताजी को १९९९ तक युद्ध अपराधी घोषित किया गया था, जिस फाईल पर जवाहर लाल नेहरू के हस्ताक्षर हैं । परन्तु 3-12-1968 में यू.एन.ओ. परिषद के प्रस्ताव नं० 2391/ xx3 के अनुसार १९९९ की बजाय आजीवन युद्ध अपराधी घोषित किया जिस पर श्रीमती इन्दिरागांधी के हस्ताक्षर हैं ।
भारत सरकार द्वारा गठित मुखर्जी आयोग के सदस्यों को तब करारा झटका लगा जब अगस्त सन्‌ २००२ में ब्रिटिश सरकार से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी से सम्बंधित गोपनीय दस्तावेजों की माँग की तथा ब्रिटिश सरकार ने मुखर्जी आयोग के सदस्यों को सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए वापिस लौटा दिया तथा सन्‌ २०२१ से पहले अपने अभिलेखागार से कोई भी महत्वपूर्ण दस्तावेज जो नेताजी से सम्बंधित है, देने से इन्कार कर दिया एवं मुखर्जी आयोग के सदस्य १३ अगस्त सन्‌ २००१ को लाल कृष्ण आडवाणी, तत्कालीन गृहमंत्री, भारत सरकार से मिले थे तथा आयोग के सदस्यों ने गृहमंत्री भारत सरकार से आग्रह किया था कि भारत सरकार लंदन में उनके लिए दस्तावेजों की उपयोगी सामग्री दिलाने के लिए समुचित कदम उठाए एवं आयोग के सदस्यों ने गृहमंत्री भारत सरकार से यह भी कहा था कि रूस के लिए भी सरकारी रूप से पत्र लिखें जिससे रूस भी ब्रिटिश सरकार पर दबाव डाले और आयोग के सदस्यों को दस्तावेज मिल सकें । अगर श्री अटल बिहारी वाजपेयी, प्रधानमंत्री, भारत सरकार, सरकारी तौर पर ब्रिटेन पर दबाब डालते तो गोपनीयता समझौतों के दस्तावेज प्राप्त किये जा सकते थे । इसलिए प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी का मौन रहना भी कोई राज की बात है । तथा नेताजी के विरूद्ध हुए समझौतों को स्वीकृति देना है ।
नेताजी के विषय में भ्रमित भारतीयों के प्रश्नों के उत्तर
अब जबकि अनेक प्रमाणों से सिद्ध हो चुका है कि नेताजी की मृत्यु वायुयान दुर्घटना में नहीं हुई थी, न ही आज सरकार के पास नेताजी के मृत्यु की कोई निश्‍चित तारीख है । साथ ही खण्डित भारत सरकार शाहनवाज जांच कमेटी तथा खोसला आयोग द्वारा भी नेताजी की वायुयान दुर्घटना में मृत्यु सिद्ध नहीं कर पाई । उपरोक्‍त दोनों जांच समितियों की रिपोर्ट से भारत के लोगों को नेताजी के विषय में गुमराह करने का षड्‍यंत्र रचा । इस षड्‍यन्त्र से भारतीय लोगों के दिमाग में तरह-तरह के सवाल उठना जरूरी है । सुभाषवादी जनता (बरेली) की १९८२ में प्रकाशित एक “नेताजी प्रशस्तिका” में कुछ ऐसे प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं ।
प्रश्न आज जो देश की हालत है उसे देखकर क्या नेताजी चुप रह सकते थे?
प्रश्न क्या नेताजी जैसा देशभक्‍त इतने लम्बे समय तक छिपकर बैठ सकता था?
उत्तर कौन सा ऐसा महान क्रान्तिकारी है जो छुप कर न रहा हो?
जरा सोचो रामचंद्र जी को अवतार माना जाता है, फिर उन्होंने छिपकर बालि को बाण क्यों मारा?
क्या पाण्डव छिपकर जंगलों में नहीं रहे थे?
क्या अर्जुन ने स्वयं को बचाने के लिए स्त्री का रूप धारण नहीं किया था?
क्या हजरत मौहम्मद साहब जिहाद में अपनी जान बचाने के लिए छिपकर मक्‍का छोड़कर मदीना नहीं चले गये थे?
क्या छत्रपति शिवाजी कायर थे, जो औरंगजेब की कैद से मिठाई की टोकरी में छिपकर निकले थे?
क्या चन्द्रशेखर आजाद और भगतसिंह समय-समय पर भूमिगत नहीं हुये थे?
क्या चे गोवेरा तथा मार्शल टीटो जैसे विश्‍व के महान क्रान्तिकारी अपनी जिन्दगी में अनेक बार भूमिगत नही हुये थे? क्या उपरोक्‍त सभी महान क्रान्तिकारी कायर थे? नहीं ये सभी क्रान्तिकारी बहुत साहसी थे वे केवल अपने उद्देश्यों के लिये भूमिगत हुए थे । जबकि नेताजी इन क्रान्तिकारियों के गुरू भी हैं तथा नेताजी की लड़ाई तो पूरे विश्‍व में साम्राज्य के खिलाफ है । इसलिये नेताजी किसी भय से नहीं अपने महान उद्देश्य को पूरा करने के लिये भूमिगत हुए ।
- याद रहे कि व्यक्‍ति जितना महान होता है, उसका उद्देश्य भी उतना ही महान होता है ।
प्रश्न नेताजी का क्या उद्देश्य है?
प्रश्न यदि नेताजी जीवित हैं तो क्यों नहीं आते?
उत्तर नेताजी ने सन्‌ १९३१ में कहा था “इस समय हमारा एक ही लक्ष्य है- “भारत की स्वाधीनता” नेताजी भारत के विभाजन के विरूद्ध थे । उन्होंने यह भी कहा था कि “हमारा युद्ध केवल ब्रिटिश साम्राज्य से नहीं बल्कि संसार के साम्राज्यवाद के विरूद्ध है । ” अतः हम केवल भारत के लिये ही नहीं बल्कि मनुष्य मात्र के हितों के लिये भी लड़ रहे हैं । भारत की पूर्ण स्वतंत्रता का अर्थ है- समस्त मानव जाति का भय मुक्‍त हो जाना ।
नेताजी जानते थे कि द्वितीय विश्‍वयुद्ध के बाद भी एक और महायुद्ध अवश्य होगा, जिसकी सम्भावना उन्होंने २६ जून १९४५ को आजाद हिन्द रेडियो (सिंगापुर) से प्रसारित अपने एक भाषण में व्यक्‍त कर दी थी । धीरे-धीरे संसार तृतीय महायुद्ध के निकट पहुँच रहा है । इसी महायुद्ध में भारत पुनः अखण्ड होगा तथा नेताजी का प्रकटीकरण होगा ।
भारत के धूर्त राजनीतिज्ञों से नेताजी का कोई समझौता नहीं होगा । नेताजी किसी भी व्यक्‍ति या देश के बल पर नहीं, अपनी ही शक्‍ति के बल पर प्रकट होंगे । उनके प्रकट होने से पहले उनके नेताजी होने के बारे में सन्देह के बादल छँट चुके होंगे । जैसे अर्जुन का अज्ञातवास पूरा होने पर गाण्डीव धनुष की टंकार ने पाण्डवों के होने के सन्देह के बादल छांट दिये थे ।
जहाँ तक हमारे विश्‍वास का प्रश्न है, नेताजी अभी भी जीवित हैं और अब भारत के लोगों के विवेक व सोच पर निर्भर करता है । लेकिन वे कब प्रकट होंगे इस प्रश्न का समुचित उत्तर नेताजी के अनुसार तृतीय विश्‍व युद्ध की चरम सीमा पर प्रकट होना है । जैसा कि उन्होंने १९ दिसम्बर १९४५ को मन्चूरिया रेडियों से अपने प्रथम सन्देश में कहा था ।
-डा. राजकरण हमदम

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