Monday, August 3, 2009

पतिताओं की जिंदगी को सँवारने जुटा एक स्वतंत्रता सेनानी


आजादी के ६२ साल बाद उनके वजूद को चेहरा दिलानेवाले व्यक्‍तित्व का नाम खैराती लाल भोला । सन १९८४ से देश की वेश्याओं एवं उनके बच्चों तथा हिजड़ों के पुनर्वास और उत्थान एवं उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़नेवाली संस्था भारतीय पतिता उद्धार सभा (पंजी.) नई दिल्ली ने विश्‍व के १७६ देशों की तरह भारत में भी वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता देने की माँग की है । सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रमुख समाजसेवी एवं स्वतंत्रता सेनानी खैराती लाल भोला का कहना है “यदि यौन सेविकाएँ (वेश्याएँ) न हो तो यौन पिपासुओं को एक ही स्थान पर सीमित न रखा जा सकेगा और यह गली मोहल्लों में अपनी यौन संतृष्टि हेतु बलात्कार व अपराध करेंगे, जिससे घर की बहू-बेटियाँ सुरक्षित नहीं रहेगी । इसलिए यौन सेविकाएँ समाज का महत्वपूर्ण अंग है, जिसके बिना समाज सुरक्षित नहीं रह सकता । उज्जैन में नगर निगम ने वेश्याओं को लाइसेंस दिए हैं । देश के ११०० रेडलाईट इलाकों के तीन लाख कोठों की तेईस लाख वेश्याएँ अपने ५१ लाख बच्चों के साथ रहती है जिनमें से अधिकतर वेश्याएँ एवं उनके बच्चे बिमारी, शोषण, उत्पीड़न व तंगी के साथ जीवन गुजार रहे हैं । एक कोठे में ३० से १५० व्यक्‍ति रह रहे हैं । इन्हें न तो जीने के लिए ताजी हवा मिल पाती है और न तो पीने के लिए ताजा, शुद्ध व स्वच्छ पानी । अधिकतर वेश्याओं की ८० प्रतिशत आय कोठा मालकिनों, पुलिस, भडुओं, दलालों, राशनवालों, साहूकारों, डॉक्टर में बँट जाती है । इस आर्थिक तंगी के कारण ये वेश्याएँ अपने बच्चों को स्कूल भेजने व ईलाज कराने में असमर्थ रहती है । आजादी के बाद वेश्याओं का सर्वेक्षण नहीं हो पाया है । भारत में अनेक रूपों में वेश्यावृत्ति या अनैतिक देह व्यापार या व्यावसायिक तौर पर यौन शोषण हो रहा है । इन्हें वेश्या, नाचनेवाली लड़कियों, कॉलगर्ल तथा धार्मिक और परंपराओं को अपनाने के नाम पर आंघ्रप्रदेश में देवदासी, जोगिन, कर्नाटक में बसाबी और बेहरिया जैसे नामों से जाना जाता है । आज कई राष्ट्रीय राजमार्गों व अन्य मार्गों पर चकलाघर, मसाज पार्लर, ब्यूटीपार्लर खुल गए हैंजो असुरक्षित यौन संबंधों को बढ़ावा दे रहे हैं । यह देश में बढ़ते एड्‌स के लिए भी जिम्मेदार है । इसलिए सरकार को इसे कानूनी जामा पहनाकर तथा इनका सर्वेक्षण कराकर इन्हें शिक्षित करने ए साथ साथ कंडोम की जानकारी देकर इनके जीवन को सुरक्षित करने की पहल करनी चाहिए । इनकी कमाई का अधिकतर हिस्सा खानेवालें, दलालों, पुलिस आदि पर अंकुश लगाकर इन्हें शोषण से बचाना चाहिए । इनके समय-समय पर स्वास्थ्य परीक्षण,पुनर्वास, उत्थान तथा जो वेश्याएँ स्वेच्छा से यह धंधा छोड़कर घर बसाना चाहती हैं, उनकी शादी कराकर घर बसाना जाना चाहिए । असहाय वृद्ध वेश्याओं को पेंशन आदि सुविधाएँ दी जाय । इनके बच्चों को शिक्षित कर राष्ट्र व समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जाय । भारतीय पतिता उद्धार सभा कई रेडलाईट एरियों में इनके बच्चों के लिए स्कूल, अस्पताल, मोबाईल, चिकित्सा वैन चालू किए हैं । आज देश में १५ प्रतिशत यौन सेविकाएँ (बाल वेश्याएँ) १५ साल से कम और २५ प्रतिशत १८ वर्ष से कम है जो एक दिन में ३ से ५ ग्राहकों को संतुष्ट करती है फिर भी वह शोषित व उत्पीड़ित है । श्री भोला के अनुसार वेश्याओं की ट्रेड यूनियन बनाने की माँग जोर पकड़ती जा रही है । कोलकत्ता में वेश्याओं के हुए सम्मेलनों में इस माँग को प्रमुखता से उठाया गया । वेश्याओं का कहना है कि यौनाचार के काम को पूरा करने के लिए उन्हें बहुत अधिक शारीरिक परिश्रम करना पड़ता है । यौनाचार के कारण उन्हें कई बार चोट भी लग जाती है तथा शारीरिक पीड़ा भी होती है, जिसकी भरपाई होनी चाहिए । श्री भोला ने राष्ट्रीय एड्‌स नियंत्रण संगठन के उस ताजा आदेश का भी विरोध किया है जिसमें वेश्याओं की कुल आवश्यकताओं के ५० प्रतिशत कंडोम्का पैसा लिए जाने तथा ५० प्रतिशत निःशुल्क दिए जानेको कहा गया है । श्री भोला ने कहा कि संगठन को वेश्याओं को उनकी आवश्यकतानुसार निःशुल्क कंडोम देने चाहिए । जन्म से हिंदूतथा सब धर्मों में समान आस्था और ईश्‍वर पर अटूट विश्‍वास रखनेवाले आर्यसमाजी ८० वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं सभा के अध्यक्ष खैराती लाल भोला पेंशन का एक रूपया भी नहीं लेते । देश की वेश्याएँ इनको अपना पिता व मसीहा मानती है । इनके मिशन में इनकी धर्मपत्‍नी एवं सभा की महासचिव श्रीमती शीला रानी की की भूमिका सराहनीय रही है । अपनी शादी की ५० वीं सालगिराह मनाने के बाद इनकी पत्‍नी का स्वर्गवास हो गया। अपने मिशन में मीडीया, पत्रकारों व समाचारपत्र पत्रिकाओं की सराहनीय भूमिका के लिए वे सदैव आभार प्रकट करते रहे हैं । जी.बी रोड दिल्ली, कोलकत्ता एवं कमाठीपुरा मुंबई की अधिकतर वेश्याएँ मजबूरी में जबरन लाई जाती है । उन्होंने कई वेश्याओं की दास्तान सुनाते हुए कहाकि म.प्र. की शमेमा एक चॉकलेट के लालच में बाल्यावस्था में इस पेशे में ढकेल दी गई । उसे यह भी नहीं पता कि सर्वप्रथम किसके साथ और कैसे हमबिस्तर हुई? किसी तरह उसने युवावस्था में इस दलदल से बाहर निकलकर शादी की परन्तु पति ने २ बच्चों की माँ बनाने के बाद उसे मारना पीटना शुरू कर दिया । मजबूरन बच्चों को रिश्तेदारों के यहाँ छोड़कर पुनः इस धंधे में लिप्त हो गई । अब वह इतनी टूट चुकी है कि उसे हर हमबिस्तर ग्राहक में पति की क्रूरता नजर आती है । पति द्वारा छोड़ने पर इस दलदल में फँसी रानी का कहना है कि सरकार बड़े-बड़े वायदे करती है । वेश्याओं के उत्थान्हेतु काम करनेवाले कई एनजीओ सरकारी धन का दुरूप्रयोग करते हैं परन्तु कोई भी हमारी वास्तविकता की तरह ध्यान नहीं देता, हमारी मदद नहीं करता । जो भले प्रतिष्ठित सफेदपोश लोग रात के अंधेरे में हमें सबकुछ मानकर अपनी रातें रंगीन करते हैं और वह जब तक हमारे साथ रात रंगीन नहीं कर लें तब तक उन्हें अपने बिस्तरों पर नींद नहीं आती है । वही सफेदपोश समाज के प्रतिष्ठित लोग दिन के उजाले में हमारे विरूद्ध आवाज उठाते हैं व हमें छूत समझते हैं । भारतीय पतिता उद्धार सभा व श्री भोलाजी हमारे पिता समान हैं । आज संस्था द्वारा देश के कई रेडलाईट एरियों मेंहमारी शारीरिक, आर्थिक व सामाजिक मजबूरी को समझतेहुए हमारा पुनर्वास व उत्थान कराया । हमारे बच्चों को शिक्शित कराकर राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ा । रानी, शमीमा व अन्य वेश्याओं का कहना है कि ३०-३५ की उम्र के बाद वेश्याओं की जवानी जब डल जाती है तो उनका जीवन नरक हो जाता है । सरकार को ऐसी वेश्याओं को ५०-५० गज का प्लॉट व स्वरोजगार कराना चाहिए । उनके स्वास्थ्य व शिक्षा की तरह विशेष ध्यान देना चाहिए । वेश्यावृत्ति भी एक व्यापार है । वेश्याएँ अपने जीविकोपार्जन हेतु अपने शरीर का व्यापार करती है, श्रम करती है । शारीरिक व आर्थिक उत्पीड़न झेलती है । राष्ट्रीय महिला आयोग के अनुसार वेश्याओं से हर वर्ष दंड के रूप में एक करोड़ रूपए की वसूली होती है । देश की महिलाएँ हर साल लगभग पाँच करोड़ वकीलों को देती है । देह व्यापार में लगे लोग हर महीने पुलिस को साढ़े नौ करोड़ रूपए रिश्वत के रूप में देते हैं । भारतीय पतिता उद्धार सभा का यह भी कहना है कि यदि तलाकशुदा, मजबूर, विधवा औरतों को देह व्यापार का हक दे दिया जाय तो छेड़खानी, बलात्कार की संख्या में कमी आएगी । भोजन, पानी वायु आदि की तरह यौनसुख भी पुरूष एवं स्त्री दोनों के लिए मुख्य शारीरिक आवश्यकता है । वास्तव में सृष्टि की रचना के साथ ही वेश्यावृत्ति का आरंभ हुआ और समय के साथ इस पेशे का रूप भी बदल गया । इस धंधे में शामिल वेश्याएँ समाज की गंदगी को दूर करती है । वेश्याएँ जहां मजबूरी व गरीबी में इस धंधे में आती है और कंडोम आदि का प्रयोग करती/कराती है, वहीं कॉलगर्ल की पहचान करना मुश्किल है । वह मजबूरी कम अय्याशी, ऐशो आराम तथा पैसों की खातिर इस धंधे में आती है । इनके साथ यौन संबंध बनाते समय पुरूष कंडोम आदि का प्रयोग नहीं करता इसलिए कॉलगर्ल एड्‌स जैसे रोग फैलाने में ज्यादा खतरनाक है । इस संदर्भ में समाज के बुद्धिजीवियों, उद्गोगपतियों, संस्था संचालकों, कवियों, लेखकों व पत्रकारों को भी इनके हक की लड़ाई लड़नी होगी । सामर्थ्यवान अपनी लड़ाई लड़ने में स्वयं सक्षम होता है सहयोग व समर्थन की जरूरत उसे है जो अपनी आवाज को बुलंद रूप से र्खने में सक्षम नहीं है । नारी विमर्श में वेश्याओं हिजड़ों, खानाबदोशों, घुमंतुओं को क्यों नहीं शामिल किया जाता? देश के नीति निर्माता अपनी योजनाओं में इन उपेक्षितों को क्यों भूल जाते हैं? आज हमें ज्ञान व विकास की दीपक उस जगह जलाने की जरूरत है जहाँ अभी तक अंधेरा है । वेश्याओं के जीवनशैली पर आधारित फिल्में यथा पाकीजा, तवायफ, उमराव जान आदि ने तो अपनी अमिट छाप छोड़ी । उसी तरह आज साहित्य व पत्रकारिता में भी इस विषयवस्तु को फोकस कर रचनाओं का सृजन हो । समाज के जिंदा लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि इस दिशा में अपने कठोर परिश्रम के साथ साधना करनेवाले साधकों को पुरस्कार व सम्मान दें तथा दिलवाएँ जिससे युवा जगत व हमारी आगामी पीढ़ी प्रेरणा ले सकी । देशी-विदेशी दानदाताओं व स्वास्थ्य से संबंधित संस्थाओं को श्री भोला जैसे व्यक्‍ति की हरसंभव मदद हेतु कदम बढाने चाहिए । सिलाई, बुनाई, सीखकर ये वेश्याएँ खुद को सुनहरे भविष्य की झलक देखने लगी है क्योंकि संस्था के संघर्ष द्वारा अब न्यायालय ने पिता की जगह माता का नाम पहचान के तौर पर लिखवाना अनिवार्य कर दिया है । पहचानपत्र द्वारा पहचान से नई हिम्मत और ताकत की अनुभूति कर रही हैं ये वेश्याएँ । आइए इनके जिंदगी को सजाने, सँवारने और सुरक्षित करने के अभियान में अपनी भूमिका सुनिश्‍चित करें ।

2 comments:

  1. भाईसाहब खैरातीलाल जी ने जिस काम के लिये अपने आपको समर्पित करा है वह कार्य साधारण हरगिज नहीं है उसके लिये बहुत आत्मबल चाहिये। मैं स्वयं भी निजी तौर पर लैंगिक विकलांगों(हिजड़ों) के लिये इसी दिशा में कार्य करता हूं आप इस कार्य को adhasach.blogspot.com हिंदी ब्लाग पर देख सकते हैं। आपने जानकारी साइबर संसार में लाकर ये बात बहुत लोगों तक पहुंचायी है आपको साधुवाद
    डा.रूपेश श्रीवास्तव

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  2. swarthheen karya or tyaag hamesha taareef ke kabil hain, aese niswarth or tyaagi logo ki har samaj ko jarurat hain

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