Saturday, July 24, 2010

आम आदमी को महंगी पड़ी यूपीए सरकार

कांग्रेस का चुनावी नारा, आम आदमी के बढ़ते कदम और हर कदम पर भारत बुलंद को पिछले एक साल में काफी सत्यापित किया है, हालांकि आम आदमी के कदम तो बढने के बजाय घटते दिखाई दे रहे है । एक तरफ महंगाई ने जहाँ उसके कदमों को कमजोर किया है, वहीं दूसरी तरफ खराब आर्थिक नीति भारत को बुलंद करने के बजाय कमजोर बना रही है । आम आदमी की सबसे जरूरी व आधारभूत जरूरत होती है- रोटी, कपड़ा और मकान और इसे जुटाने के लिए उसे घर से निकलना पड़ता है, और रोज यातायात पर व्यय करना पड़ता है, पर पेट्रोल, डीजल की बढ़ती किमतों को देखते हुये रोज रोजगार के लिए भी जहोजहद करना कठिन दिख रहा है, ऐसे में रोटी, कपड़ा और मकान की व्यवस्था करना, आधारभूत आवश्यकता की पूर्ति करना और भी मुश्‍किल कहा जायेगा । लेकिन कदम तो तभी बढेंगे जब बस, ट्रेन या यातायात के साधनों में किराया सस्ता होगा जो इस बढती महंगाई में और भी मुश्किल दिखाई दे रहा है । रोटी और कपड़ा खुद व खुद महंगा हो जायेगा, क्योंकि ट्रॉसपोट्रेशन भी पेट्रोल, डीजल पर ही निर्भर करता है, ऐसी स्थिति में यह नहीं समझ आ रहा कि यह सरकार आम आदमी किसे समझती है? क्या ये उन्हें समझती है जो इनके मंत्रिमंडल में बैठे ऐश की जिंदगी जी रहे है, या वे नेतागण जिन्हें अपने जेब से एक भी रूपया खर्च नहीं करना पड़ता है तथा वे भयावह आम आदमी जिनके पास अपार कालाधंधा है, जिन्हें धन रख के लिए भी स्विस बैंक का सहारा लेना पड़ता है । क्योंकि इस नीति में भारत की 99% जनता तो दिखाई ही नहीं दे रही है, जो आम आदमी के दायरे में आती है ।

अभी पिछले दिनों ही मंदी से जनता त्रस्त थी ही, साथ ही साथ दाल, चीनी की महंगाई ने पिछले दिनों हाहाकार मचाई ही थी । पेट्रोलियम पदार्थों का मूल्य बढ़ाना सरकार की एक ऐसी पूंजी है जिसे बढाकर सारी किमतों में खुद व खुद इजाफा हो जाता है, और एक बार जनता ने पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ी हुई किमतों को स्वीकार कर लिया तो अन्य पदार्थों की किमतों को बढाने का रास्ता खुद व खुद मिल जाता है । कहा जाय तो पेट्रोलियम पदार्थों की किमते आगामी दिनों में महंगाई रूपी भयावह फिल्म का ट्रेलर दिखाना सरकार की मंशा है ।

देश की भोली-भाली जनता को अब निःसंदेह विरोध करना चाहिये अन्यथा दिन पे दिन इससे भी भयावह स्थिति होती ही जायेगी । ऐसी स्थिति में वित्तमंत्री प्रणय मुखर्जी ने मीडिया कर्मियों से बात करते हुये अपनी असमर्थता जताई कि किमत बढाने के अलावा कोई अन्य चारा नहीं हैं, उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि पेट्रोलियम पदार्थ की किमते बाजार पर निर्भर करती है लेकिन बाजार भी पेट्रोलियम पदार्थ की किमतों पर निर्भर करता है । जहाँ डीजल की किमतों पर 1.39% का फर्क अभी है जो खाद्य सामाग्रियों की किमतों को प्रभावित करेगा तथा जो आम आदमियों की जरूरत भी है । आगे चलकर 1.39% का यह फर्क इतना छोटा नहीं रह जायेगा । मुखर्जी के अनुसार महंगाई पर इसका प्रभाव 0.9% तक होगा, लेकिन अगर हर छोटी-बड़ी वस्तु को जोड़कर देखे तो क्या 0.9% की रकम इतनी छोटी होगी । जहाँ इन वक्‍तव्यों से यहाँ एक तरफ लाचारी दिखाई दे रही है, वही भारत की जनता भी इस बोझ को सहने के लिए लाचार दिख रही है, पर सवाल यह उठता है कि ऐसी स्थिति में आम आदमी कैसे बच्चों की परवरिश करेगा, कैसे दो वक्‍त की रोटी लायेगा, और कैसे तन ढकने को कपड़े का इंतजाम कर पायेगा? या इसमें भी कटौती करनी पडेगी । ऐसी स्थिति में आम आदमी के मन में यही बात है कि महंगी पड़ी यह सरकार ।



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