जीवन एक अनंत धरातल
हम है इसका एक छोटा तल
कभी है अवतल कभी है उत्तल
कभी अभिन्न इसी सा समतल
जीवन एक अनंत धरातल
कभी बहुत आनंद समेटे
कभी दर्द की आहट लेके
आता जाता आज और कल
जीवन एक अनंत धरातल
जो बिक जाये दाम उसीका
झूठा जो है नाम उसीका
जो न बिका बेकार है यहाँ
मिथ्या सब संसार है यहाँ
क्या ये सूखे सूखे उपवन
क्या ये बहती नदिया कल-कल
जीवन एक अनंत धरातल
जीवन एक अनंत धरातल
Friday, September 24, 2010
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बहुत अच्छी रचना
ReplyDeletejivan ki,vastvikta btane vali rachna hai ,badhiya likha hai .aisa hi likhte rahen .
ReplyDeletekavyatmak roop me manav jivan ka lekha jokha achha laga .
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