पिछले दिनों जापान में आई भीषण त्रासदी सुनामी व भूकंप के रूप में प्रकृति का एक खौफनाक चेहरा उभरकर आया है । अलबत्ता इसे बहुत से लोग १९ तारीख की रात्रि को आने वाली पूर्णिमा से जोड़ रहे हैं, जिसमें चन्द्रमा पृथ्वी से काफी निकट कहा जायेगा । बहुत से ज्योतिष व खगोलविद भी इस बात की चर्चा कर रहे हैं, लेकिन देखा जाये तो ये भयानक त्रासदी पूर्णिमा से ९, १० दिन पहले घटित हुई है । चंद्रमा २७ दिन ३ घंटे में पृथ्वी का एक चक्कर लगा लेता है और पूर्णिमा के १० दिन पहले चंद्रमा और पृथ्वी की दूरी सामान्य तौर पर ही थी इस घटना का चंद्रमा से या पूर्णिमा से पृथ्वी पर कोई भी भौगोलिक परिवर्तन का आधार ज्योतिषीय ढंग से नहीं साबित होता है । यह बात अवश्य है, कि पूर्णिमा के समय में समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पन्न होना संवेदनशील प्राणियों में संवेदना के वेग का बढ़ना आदि नजर आता है । पर इतनी बड़ी घटना को पूर्णिमा से जोड़े जाने का कहीं से भी औचित्य नहीं बनता ।
संसार तीन तरह की शक्तियों के संयुक्त बन्धन से संचालित हो रहा है, जिसको स्थूल रूप से तीन वर्गों में बाँट कर समझ सकते हैं, पहला भौतिक आधार पर वात, पित्त और कफ आध्यात्मिक आधार पर ब्रम्हा, विष्णु और महेश और वैज्ञानिक रूप से प्रोटान, इलेक्टॉन, व न्यूट्रॉन की बाइन्डिंग एनर्जी इन्हीं के आधार पर यह सृष्टि पदार्थ रूप में साकार दिखाई देती है । इन तीनों शक्तियों में जब संतुलन बिगड़ता है, तो प्रकृति की अप्राकृतिक आपदाएं होती हैं । वर्तमान समय में गोचर के ग्रहों की व्याख्या करेंगे तो हम पायेंगे कि कुंभ राशि में ही गुरू व मंगल का एक साथ मजबूत होना तथा शनि का मंगल व सूर्य से षडाष्टक योग बनाना एक भौगोलिक असंतुलन का तो सूचक है ही साथ ही साथ २०१० में जब सूर्य की मेष संक्रान्ति हुई थी उस समय ग्रह स्थिति के कारण जैसे मेष लग्न का शुक्र लग्न में पाया जाना साथ ही छठें घर में शनि की वक्रीय स्थिति शुक्र, शनि के साथ षडाष्टक योग बनाते हुए अकारक योग का सूचक है । और ऐसे में मंगल लग्नाधिपति जो पृथ्वी का बड़ा ही कारक ग्रह माना जाता है । उसका नीच राशि कर्क में कमजोर होना तथा उसके साथ चन्द्रमा का मीन राशि में मूलत्रिकोण का संबंध बनाना एक भारी प्राकृतिक आपदा विशेषकर सुनामी व भूंकप का असंतुलन तो दिखाई दे रहा है, साथ ही इस चक्र के नवमांश को ध्यान से देखें तो वृश्चिक लग्न राशि का नवमांश बन रहा है । चतुर्थ भाव में शनि व चन्द्रमा तथा द्वादश भाव में सूर्य, मंगल व राहु एक प्राकृतिक आपदा का सूचक है ।
इस चक्र के मुद्दा दशा में ध्यान दें तो जापान की यह घटना शनि की मुद्दा शुक्र की अन्तर मुददा में घटी है, यानि यहां पर हम स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि २०१० के सूर्य के मेष संक्रान्ति में बने चक्र के अनुसार अकारक कफ़स ग्रह काफी मजबूत अवश्था में है । और आग्नेय तत्व के कारक ग्रह सूर्य, मंगल व वृहस्पति जो कि बचाव ग्रह में है, काफी कमजोर स्थिति में दिखाई दे रहे हैं इस कारण यह घटना घटी । साथ ही साथ उस समय की मंगल की स्थिति से घटना के मंगल की स्थिति आठवें स्थान की है, जो कि और ज्यादा खराब बनती है । इस कारण से यह घटना ग्रहों के असंतुलन के कारण घटी है, ना कि चन्द्रमा के निकटता के कारण घटी है । अलबत्ता इस घटना को घटाने में चन्द्रमा एक कारक ग्रह हो सकता है, लेकिन सारा दोष चन्द्रमा का नहीं है । इसमें मुख्य दोष मंगल का दिखाई दे रहा है । भूकंप तथा प्राकृतिक आपदाएं २०११ में पुनः एक बार २६ दिसम्बर २०११ से १३ अप्रैल २०१२ के बाद पुनः प्राकृतिक आपदाओं के लक्षण दिखाई दे रहे हैं । यह सर्वाधिक खराब समय ४ जनवरी २०१२ से १२ जनवरी २०१२ के बीच में ३ मार्च से १२ मार्च के बीच दिखाई दे रहा है ।
यह एशियाई देशों में विशेषकर मुस्लिम बस्तियों में तनाव, युद्ध के कारण कुछ घटनाएं तो घटेंगी साथ ही कुछ अप्रत्याशित घटनाएं घट सकती हैं । विश्व में दो जगह विशेष सावधानी बरतनी चाहिए । पहला तो पश्चिम उत्तर के कुछ देशों में, दूसरा दक्षिण पूर्वी कुछ देशों को शांति व धैर्यपूर्वक इस घटना के ना घटने का उपाय करना चाहिये ।
Saturday, March 19, 2011
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आलेख अच्छा लगा।
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