भारत की आजादी से लेकर अब तक 64 वर्ष तक भारत और पाक के बीच कश्मीर एक ऐसा मुद्दा है, जिसमें दोनों ही देशों में अक्सर विवाद होता ही है, और लाख प्रयास के बावजूद भी इस मुद्दे का हल आज तक नहीं निकल पाया है । जनता चाहे जहां कही की क्यों ना हो हमेशा सुख शांति ही चाहती है । आम जनता को कभी भी राजनीति से बहुत ज्यादा लेना-देना नहीं होता, वर्तमान के राजनीतिज्ञों और अंग्रेजी हुकूमत में बहुत ज्यादा अंतर नहीं कहा जा सकता । क्योंकि अंग्रेजों की भी यही नीति रही है कि दो सम्प्रदायों एवं जातियों में फूट डालो और राजनीति करो ।
वर्तमान राजनीतिज्ञ भी ऐसी ही स्थिति पैदा कर रहे है, और निजी स्वार्थवंश वहाँ की जनता में फूट पैदा कर रहे है । जिसका निःसंदेह पाकिस्तान शासन को फायदा मिलता है, और वहां आतंकवादी संगठनों को मजबूत होने का रास्ता मिलता है । यह जगजाहिर है कि इन आंतकी संगठनों के सक्रिय होने तथा हमेशा अशांति के माहौल के कारण कश्मीर विकास से वंचित है, और भारत का स्वर्ग कही जाने वाली यह जगह गरीबी, बेरोजगारी और लाचारी के कारण कभी आंतकियों के बहलावे का शिकार होती है तो कभी राजनीतिजों के बहकावे का । यह जगजाहिर है कि आय दिन आतंकवादी गतिविधियों को चलाने एवं कश्मीर की अशान्ति के पीछे आईएसआई का हाथ है, लेकिन कहते है, कि जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दूसरो से क्या उम्मीद करें, दूसरे तो इसका फायदा उठायेंगे ही । हमारे रहंनुमा राजनीतिज्ञ भी इस मुद्दे को लेकर बहुत ज्यादा संजीदा नहीं हो पाये, और ना ही कभी इस दिशा को हल करने के लिए संजीदगी से कदम उठायें । १५ अगस्त को लालकिले से प्रधानमंत्री ने भी कश्मीर मुद्दे पर चिंता जताते हुये कहा कि जम्मू-कश्मीर राज्य की सभी राजनीतिक पार्टियों के साथ बैठकर वह राज्य में जारी सभी राजनैतिक हिंसा को खत्म करने के लिए विचार करेंगे । लेकिन इन बातों से कभी भी कश्मीर का भला नही होना है, जब तक वहां की सरकार कोई कठोर कदम नही उठाती । और वहां के नागरिकों को डेरेक्ट सहायता नहीं देती ।
सरकार वहां के नागरिकों को खास अहमियत देते हुये उन्हें हर सुविधा पहुंचाने का प्रयास करें, और साथ ही साथ हर क्षेत्र में एक अलग तरह का उनके विकास को प्रोसाहन दे या आरक्षण जैसा पैकेज दे, जिससे वहां के युवाओं में देश के प्रति अच्छी भावनाएं जागृत हो पाये, और वह इसी के भी बरगलाने में ना आये । तभी एक सही विकल्प साबित होगा , साथ ही बाहरी खराब आंतकी गतिविधियों से एंव राष्ट्रविरोधी गतिविधियों से बचाने के लिए यहां अनुशासित व्यवस्था लागू करे ।
इसके साथ ही हमने इस अंक में देश की स्वाधीनता दिवस की महत्ता एंव उसके पीछे छुपी नई पीढ़ी के युवाओं की काफी बदलाव की भावनाओं को दर्शाने की कोशिश की है । हमने यह दिखाने की कोशिश की है, कि आज की नई पीढ़ी स्वतंत्रता को उन्मुक्ता समझते हुये मौज-मस्ती और स्वछंदता का दिन मानती है, जबकि स्वाधीनता का सही अभिप्राय तब सार्थक होगा, जब आज के युवाओं में स्वाधीनता को खुद की जिम्मेदारियों के प्रति अधीनता का अभिप्राय समझेंगे और जिन स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों पर हमें यह दिन नसीब हुआ है, उनकी गरिमा को बढाने के लिए कदम उठायेंगे । जो कि वर्तमान उन्मुक्त संस्कृति इन भावनाओं में विलुप्त होती जा रही है, आशा है कि अभी भी पुरानी संस्कृति को मानने वाले अभिभावक व बुजुर्ग नये बच्चों एवं युवकों में इस संस्कृति का फैलाव, एवं इस दिन का वास्तविक अर्थ समझाने का चलन अवश्य करेंगे । और ऐसा जब हो जायेगा तभी इस दिन की अहमियत साबित हो पायेगी ।
आप सब को देश की 64 वर्षीय सफलता का सफर मुबारक हो । एक बार पुनः 64 वीं स्वतंत्रता दिवस की आपको हार्दिक शुभकामनायें ।
जय हिन्द, जय भारत
Wednesday, August 25, 2010
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इसका तो एक ही हल है!
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दो देशों के बीच की दीवार गिरा दी जाये!
badiya lekh.... shukriya share karne k liye...
ReplyDeleteA Silent Silence : Teri yaadon ki khushboo..(तेरी यादों की खुशबू..)
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