Tuesday, June 28, 2011

रंगों से सँवारें जीवन


प्रकृति स्वयं को विभिन्‍न रंगों में अभिव्यक्‍त करती है और व्यक्‍ति प्रकृति के इन्हीं रंगों के माध्यम से अपनी संवेदनाओं, भावनाओं, एवं पसंद को अभिव्यक्‍त करता है । रंग अपनी ओजस्विता एवं प्रकाश द्वारा मानव मस्तिष्क एवं शरीर को प्रभावित करते हैं ।

सूर्य के श्‍वेत उज्‍जवल प्रकाश में सात रंग अर्न्तनिहित होते हैं । लाल, पीला, आसमानी, हरा, नीला तथा बैंगनी ये सातों रंग वस्तुतः सात रंगों की रश्मियां हैं इन्हें त्रिआयामी (प्रिज्म) नामक शीशे से देखा जा सकता है । जम कालिक ग्रहों की प्रबल या निर्मल अवस्था के अनुरूप इन ग्रहों की रश्मियां मनुष्य के जीवन पर सकारात्मक अथवा नकारात्मक प्रभाव डालती हैं इसी कारण हर व्यक्‍ति का भाग्य एवं व्यक्‍तित्व दूसरे से भिन्‍न होता है । वैज्ञानिकों ने भी अपने परीक्षणों के आधार पर रंगों के लक्षणों एवं प्रभावों की व्याख्या की है । वर्तमान में प्रचलित ‘रंगों द्वारा चिकित्सा’ मानव जीवन में रंगों की महत्त्वता का ज्वलन्त उदाहरण है ।

पौराणिक ग्रंथों में श्रीकृष्ण एवं राम को पीले पीताम्बर पहने, माँ भगवती व लक्ष्मी को लाल साड़ी पहने, सरस्वती को श्‍वेत वस्त्र पहने दिखाया गया है । साधु-संयासी सदैव भगवा वस्त्र धारण करते हैं । डॉक्टर सफेद व हरे वस्त्र का उपयोग करते हैं । जज व वकील काले रंग का चौगा इस्तेमाल करते हैं । वास्तव में इन सब के पीछे रंगों का मनोवैज्ञानिक सांकेतिक अर्थ है । रंगों का ज्योतिष शास्त्र, रत्‍न शास्त्र, धार्मिक परम्पराओं व चिकित्सा शास्त्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है । कुछ रंग आकर्षण उत्पन्‍न करते हैं, हमे पॉजीटिव एनर्जी देते हैं तो कुछ रंगों को हमारी आँखें दुबारा देखना नहीं चाहती । कुछ रंग मन को शान्ति प्रदान करते हैं, आँखों को ठण्डक देते हैं, जबकि कुछ रंग शरीर में गरमी पहुंचाते हैं, हमको उत्तेजित करते हैं ।

वस्त्र, कमरे, टेबल, क्लॉथ, बिस्तरों, कम्बलों सॉज-सज्जा के सामानों में किन रंगों का प्रयोग किया जाये इसकी जानकारी सर्व साधारण को नहीं होती । वास्तव में रंगों को उनके प्रभावों व परिणामों को ध्यान में रखते हुए प्रयोग में लाया जाना चाहिये । जीवन में अनुकूल रंगों को प्रयोग में लाकर न केवल भाग्य को बलवान बनाया जा सकता है बल्कि प्राकृतिक तौर पर रोगों का निदान भी किया जा सकता है । वैसे तो सात रंगों के सम्मिश्रण से हजारों रंग बन जाते हैं, किन्तु मनुष्य के शरीर एवं मस्तिष्क को प्रभावित करने वाले कुछ रंग इस प्रकार हैं-


सफेद -


यह रंग पवित्रता, शुद्धता, शांति, विद्या, नीति एवं सभ्यता का प्रतीक है । सफेद रंग के प्रयोग से मन की चंचलता समाप्त होती है । व्यक्‍ति की सोच सकारात्मक बनती है । सफेद रंग पसंद करने वाला व्यक्‍ति संयमी, सहनशील व शुद्धता का ध्यान रखने वाला होता है । सात्त्विक विचार का होता है । विद्यार्थियों के लिये यह रंग शुभ फलदायक है ।


लाल -


लाल रंग ऊर्जा, स्फूर्ति शक्‍ति महत्त्वाकांक्षा, उत्तेजना, क्रोध, पराक्रम, बल व उत्साह का द्योतक है । यह रंग अनुकूल परिणाम, सफलता, संघर्षों से जूझने व खतरों से खेलने में अदम्य साहस प्रदान करता है । यह स्नायु व रक्‍त की क्रियाशीलता को बढ़ाता है तथा एड्रीनल ग्रन्थि व संवेदी तंत्रिकाओं को उत्तेजित करता है । क्रोधी, चिड़चिड़े व हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित लोगों को इस रंग के प्रयोग से बचना चाहिये । शारीरिक दुर्बलता, मानसिक क्षीणता, भय, ह्रदय सम्बन्धी विकार तथा नपुंसकता को दूर करने के लिये लाल रंग का प्रयोग लाभदायक होता है ।


नीला -


यह रंग स्नेह, शांति, सौजन्य, पवित्रता, बल, पौरूष और वीर भाव का परिचायक है । नीला रंग व्यक्‍ति को सत्य भाषी, धार्मिक, धैर्यवान बनाता है । इस रंग में प्रेम-माधुर्य, त्याग, कोमलता, अनुराग और विश्‍वास के भाव निहित रहते हैं । यह रंग रक्‍त संचार व्यवस्था को ठीक रखता है । नीले रंग की बोतल में पानी भर कर पीने से एवं इस रंग के अधिकाधिक प्रयोग से हाई ब्लड़ प्रेशर, जोड़ों के दर्द, दमा, श्‍वांस के रोग, स्नायु तंत्र व आँखों के रोग दूर हो सकते हैं ।


पीला -


पीला रंग आनन्द, ऐश्‍वर्य, कीर्ति, भव्यता, सुख, आरोग्यता, एवं योग्यता का परिचायक है । हल्का या मिश्रित पीला रंग दरिद्रता व बीमारी का सूचक है । माँस-पेशियों को मजबूत बनाये रखने व पाचन संस्थान को ठीक रखने के लिये इसका प्रयोग लाभदायक है किन्तु अधिक समय तक इसके प्रयोग से पित्त दोष उत्पन्‍न हो सकता है । पीला रंग पसंद करने वाले व्यक्‍ति प्रशंसा के भूखे, बातों को बढ़ा चढ़ा कर कहने वाले, लोगों को टीका-टिप्पणी पर ध्यान न देने वाले तथा कुछ डरपोक होते हैं ।


हरा -


हरा रंग व्यक्‍ति की राजसी ठाट, गर्वशीलता, अपरिवर्तन और निंरकुश प्रवृत्ति की ओर संकेत करता है । यह रंग मन को प्रसन्‍नता, ताजगी, हृदय को शीतलता, सुख-शांति व नेत्रों को ठण्डक प्रदान करता है । हरा रंग पसंद करने वाले व्यक्‍ति हास्य प्रिय, चंचल, कर्मशील, सक्रिय व आत्म विश्‍वासी होते हैं । हर रंग के प्रयोग द्वारा नाड़ी सम्बन्धी रोग, आमाशय, आँतों, वाणी, जिह्‌वा व लीवर के रोग दूर किये जा सकते हैं । हरा रंग मन में उत्तम भावनाओं को विकसित कर मानसिक तनाव से छुटकारा दिलाता है ।


नारंगी -


नारंगी रंग लाल व पीले रंग का सम्मिश्रण है । यह रोगाणु प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है । नाड़ी की गति को बढ़ाता है किन्तु रक्‍त चाप को सामान्य बनाये रखता है । यह जीवन में उत्तेजना व बल प्रदान करता है । इस रंग को पसंद करने वाले व्यक्‍ति नर्म दिल, दयालु, एकाग्रता से काम करने वाले तथा धीरे-धीरे मित्रता को विकसित करने वाले होते हैं । ये लोग व्यर्थ वाद-विवाद के झमेले में उलझना पसंद नही करते हैं । नारंगी रंग धार्मिकता, दार्शनिकता, एवं साधना का द्योतक है ।


काला -


सभी रंगों के सम्मिश्रण से तैयार काला रंग रंगों की सत्ता को नकारता है तथा विमुखता को व्यक्‍त करता है । यह रंग बदला, घृणा तथा द्वन्द्व की ओर संकेत करता है । काला रंग पसंद करने वाले व्यक्‍ति परिस्थितियों के विरूद्ध विद्रोह करने व हार न मानने की क्षमता रखते हैं । न्याय व समर्पण की भावना रखने वाले ये लोग समय आने पर सबको तिलांजलि देने से भी नहीं चूकते । तामसिक प्रवृत्ति का यह रंग सुरक्षात्मक कवच के रूप में भी प्रयोग में लाया जाता है । इस रंग का प्रयोग सर्दियों में अनुकूल रहता है ।

“कॉमेडी के मसीहा - चार्ली चैप्लिन”

वीरू के बेटे ने स्कूल से आते ही अपने पापा को बताया कि आज स्कूल में बहुत मजा आया । वीरू ने पूछा कि क्यूं आज पढ़ाई की जगह तुम्हें कोई कॉमेडी फिल्म दिखा दी जो इतना खुश हो रहे हो? वीरू के बेटे ने कहा कि कॉमेडी फिल्म तो नहीं दिखाई लेकिन हमारे टीचर ने आज कॉमेडी फिल्म के जन्मदाता चार्ली चैप्लिन के बारे में बहुत कुछ नई जानकारियां दी हैं । पापा क्या आप जानते हो कि चार्ली चैप्लिन दुनिया के सबसे बड़े आदमियों में से एक थे । वीरू ने मज़ाक करते हुए कहा क्यूं वो क्या १२ नंबर के जूते पहनते थे? बेटे ने नाराज़ होते हुए कहा अगर आपको ठीक से सुनना हो तो मैं उनके बारे में बहुत कुछ बता सकता हूँ । जैसे ही वीरू ने हामी भरी तो उसके बेटे ने कहना शुरू किया कि हमारे टीचर ने बताया है कि चार्ली चैप्लिन का नाम आज भी दुनिया के उन प्रसिद्ध हास्य कलाकारों की सूची में सबसे अव्वल नंबर पर आता है जिन्होंने अपनी जुबान से बिना एक अक्षर भी बोले सारा जीवन दुनिया को वो हंसी-खुशी और आनंद दिया है जिसके बारे में आसानी से सोचा भी नहीं जा सकता । इस महान कलाकार ने जहां अपनी कॉमेडी कला की बदौलत चुप रहकर अपने जीते जी तो हर किसी को हंसाया वहीं आज उनके इस दुनिया से जाने के बरसों बाद भी हर पीढ़ी के लोग उनकी हास्य की इस जादूगरी को सलाम करते हैं । 16 अप्रैल 1889 को इंग्लैंड में जन्मे इस महान कलाकार की सबसे बड़ी विशेषता यही थी कि लोग न सिर्फ उनके हंसने पर उनके साथ हंसते थे बल्कि उनके चलने पर, उनके रोने पर, उनके गिरने पर, उनके पहनावे को देखकर दिल खोलकर खिलखिलाते थे । अगर इस बात को यूं भी कहा जाये कि उनकी हर अदा में कॉमेडी थी और जमाना उनकी हर अदा का दीवाना था, तो गलत न होगा ।

पांच-छह साल की छोटी उम्र में जब बच्चे सिर्फ खेलने कूदने में मस्त होते हैं इस महान कलाकार ने उस समय कॉमेडी करके अपनी अनोखी अदाओं से दर्शकों को लोटपोट करना शुरू कर दिया था । चार्ली-चैप्लिन ने अपने घर को ही अपनी कॉमेडी की पाठशाला और अपने माता-पिता को ही अपना गुरू बनाया । इनके माता-पिता दोनों ही अपने जमाने के अच्छे गायक और स्टेज के प्रसिद्ध कलाकार थे । एक दिन अचानक एक कार्यक्रम में इनकी मां की तबियत खराब होने की वजह से उनकी आवाज चली गई । थियेटर में बैठे दर्शकों द्वारा फेंकी गई कुछ वस्तुओं से वो बुरी तरह घायल हो गईं । उस समय बिना एक पल की देरी किये इन नन्हें बालक ने थोड़ा घबराते हुए लेकिन मन में दृढ़ विश्‍वास लिये अकेले ही मंच पर जाकर अपनी कॉमेडी के दम पर सारे शो को संभाल लिया । उसके बाद चार्ली चैप्लिन ने जीवन में कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा ।

सर चार्ली चैप्लिन एक सफल हास्य अभिनेता होने के साथ-साथ फिल्म निर्देशक और अमेरिकी सिनेमा के निर्माता और संगीतज्ञ भी थे । चार्ली चैप्लिन ने बचपन से लेकर 77 वर्ष की आयु तक अभिनय, निर्देशक, पटकथा, निर्माण और संगीत की सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया । बिना शब्दों और कहानियों की हॉलीवुड में बनी फिल्मों में चार्ली चैप्लिन ने हास्य की अपनी खास शैली से यह साबित कर दिया कि केवल पढ़-लिख लेने से ही कोई विद्वान नहीं होता । महानता तो कलाकार की कला से पहचानी जाती है और बिना बोले भी आप गुणवान बन सकते हैं । यह अपने युग के सबसे रचनात्मक और प्रभावशाली व्यक्‍तियों में से एक थे । इन्होंने सारी उम्र सादगी को अपनाने हुए कॉमेडी को ऐसी बुलदियों तक पहुंचा दिया जिसे आज तक कोई दूसरा कलाकार छू भी नहीं पाया । इनके सारे जीवन को यदि करीब से देखा जाये तो एक बात खुलकर सामने आती है कि इस कलाकार ने कॉमेडी करते समय कभी फूहड़ता का सहारा नहीं लिया । इसलिये शायद दुनिया के हर द्वेष में स्टेज और फिल्मी कलाकारों ने कभी इनकी चाल-ढाल से लेकर कपड़ों तक और कभी इनकी खास स्टाइल वाली मूछों की नकल करके दर्शकों को खुश करने की कोशिश की है ।

हर किसी को मुस्कुराहट और खिलखिलाहट देने वाले मूक सिनेमा के आइकन माने जाने वाले इन कलाकार के मन में सदैव यही सोच रहती थी कि अपनी तारीफ खुद ही की तो क्या किया, मजा तो तभी है कि दूसरे लोग आपके काम की तारीफ करें । चार्ली चैप्लिन की कामयाबी का सबसे बड़ा रहस्य यही था कि इन्होंने जीवन को ही एक नाटक समझ कर उसकी पूजा की जिस की वजह यह खुद भी प्रसन्‍न रहते थे और दूसरों को भी सदा प्रसन्‍न रखते थे । इनके बारे में आज तक यही कहा जाता है कि इनके अलावा कोई भी ऐसा कलाकार नहीं हुआ जिस किसी एक व्यक्‍ति ने अकेले सारी दुनिया के लोगों को इतना मनोरंजन, सुख और खुशी दी हो । सारी बात सुनने के बाद वीरू ने कहा कि तुम्हारे टीचर ने चार्ली चैप्लिन के बारे में बहुत कुछ बता दिया लेकिन यह नहीं बताया कि उन्होंने यह भी कहा था कि हंसी बिना बीता हमारा हर दिन व्यर्थ होता है । सर चार्ली चैप्लिन के महान और उत्साही जीवन से प्रेरणा लेते हुए जौली अंकल का यह विश्‍वास और भी दृढ़ हो गया है कि जो कोई सच्ची लगन से किसी कार्य को करते हैं उनके विचारों, वाणी एवं कर्मों पर पूर्ण आत्मविश्‍वास की छाप लग जाती है । कॉमेडी के मसीहा चार्ली चैप्लिन ने इस बात को सच साबित कर दिखाया कि कोई किसी भी पेशे से जुड़ा हो वो चुप रहकर भी अपने पेशे की सही सेवा करने के साथ हर किसी को खुशियाँ दे सकता है ।

Tuesday, June 7, 2011

केन्द्र सरकार ने दिखाई सख्ती

मनरेगा में हो रहे व्यापक भ्रष्टाचार और घपलेबाजी को रोकने के लिए केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने एक सख्त निर्णय लिया है जिसके अनुसार, राज्य सरकार को दिए जाने वाले केन्द्रीय राशि वित्तीय वर्ष में तीन किश्तों में दी जाती है । ये राशि अब राज्यों को पहले किश्त का काम और खर्च का ब्यौरेवार रिपोर्ट देने के बाद ही दूसरी किश्त जारी की जाएगी । सरकारी सूत्रों के अनुसार, मनरेगा के तहत्‌ राज्यों सरकारों को दी जाने वाली राशि, राज्य सरकार अन्य योजनाओं पर खर्च कर रही है, जिसकी वजह से मनरेगा को सुचारू रूप से क्रियान्वित करने में समस्या आ रही है ।


केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2011-12 के लिए मनरेगा के तहत राज्यवार राशि आबंटन :-


उत्तर प्रदेश :- 8.435 करोड़ रूपये
मध्य प्रदेश :- 6000 करोड़ रूपये
पश्‍चिम बंगाल :- 3.713 करोड़ रूपये
बिहार :- 3,166 करोड़ रूपये
छत्तीसगढ़ :- 2,075 करोड़ रूपये
झारखंड :- 1,471 करोड़ रूपये

केन्द्र सरकार ने दिखाई सख्ती

केन्द्र सरकार ने दिखाई सख्ती

Monday, June 6, 2011

ज्योतिष और उससे जुड़े भ्रम

ज्योतिष शास्त्र उस विद्या का नाम है जो ब्रह्मांड में विचरने वाले ग्रह - नक्षत्रों की गति, दूरी और स्थिति का गणितीय आधार पर गणना करता है । ज्योतिष शास्त्र का सम्बन्ध वेदों से है परन्तु इसका यह तात्पर्य कादाचित नहीं कि ज्योतिष शास्त्र महज़ बस एक ग्रन्थ है । अपितु यह एक विज्ञान है जो अपने गणतिय समीकरणों के ज़रिये आकाशीय ग्रह नक्षत्रों की चाल बताने के साथ - साथ सूर्य - चन्द्र ग्रहण, तिथि, व्रत - त्यौहार, ऋतु परिवर्तन, आदि का भी इसी के माध्यम से पता लगता है । ज्योतिषीय गणना‌ओं के आधार पर ही एक भविष्यवक्‍ता मानव जीवन से जुड़े अनेक पहलु‌ओं के विषय में हमें जन्मपत्री के माध्यम से बताता है । किसी भी व्यक्‍ति की कुण्डली का अध्ययन भी ज्योतिषीय गणना‌ओं के आधार पर ही किया जाता है । आज बदलते दौर के साथ हम जितना आधुनिक होते जा रहे हैं उतना ही ज़्यादा हम भविष्य को जानने के लि‌ऐ भी आतुर रहने लगे हैं । शायद यही वजह है कि आज ज्योतिष विद्या को अनेक भ्रान्तियों ने आ घेरा है जिस कारण समाज में अन्धविश्‍वास भी बढ़ने लगा है । वहम और वास्तविकता के बीच का सच क्या है यही जानने के लि‌ऐ हमने बातचीत की पण्डित कृष्ण गोपाल मिश्र से -


प्र. - पण्डित जी ज्योतिष क्या है ?


उ. - वैसे ज्योतिष शब्द अपने आप में ही अपना अभिप्राय प्रकट करता है । ज्योतिष खगोलीय ज्योति पिण्डों की स्थिति एवं उनके वातावरण पर प्रभाव आदि ज्ञान को कहा जाता है । प्रकृति से जुड़ा हर ज्ञान अपने आप में विज्ञान है और विज्ञान से भी सर्वोपरि ज्ञान या महाविज्ञान ज्योतिष है जो हमें जीवन की उत्पत्ति या जीवन की रूपरेखा आदि का ज्ञान प्रदान करता है, बल्कि हम यह कह सकते हैं कि हमारे समाज के अधिकतर संस्कार जो वैज्ञानिक सम्मत हैं वो ज्योतिष ज्ञान से ही संभव है । जिस प्रकार से जीवन का आधार बिंदु या पदार्थ मात्र का साकार रूप में होने का आधार है, धनात्मक, तटस्थ और ऋणात्मक नामक तीन ऊर्जा‌ओं के सहसंजन (आपस में जुड़ा होना), जिसे वैज्ञानिक आधार पर पदार्थ का सूक्ष्मतम कण परमाणु संरचना से समझ सकते हैं । इस आधार पर इस ब्रह्माण्ड में हर छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा कण पिण्ड या पदार्थ सूक्ष्म व स्थूल रूप से एक-दूसरे से कहीं न कहीं सम्बंध रखते हैं और ऊर्जा परिवर्तन के आधार संरचना, आकार एवं गुण आदि परिवर्तित होते रहते हैं । ऊर्जा परिवर्तन पिण्डों के आपसी आकर्षण के कारण गतिमान पिण्डों द्वारा कालपरिवर्तन पर निर्भर करता है । जिससे हम सबका जीवन संचालित होता है ।


प्र. - क्या ज्योतिष और हस्त रेखा विज्ञान एक दूसरे पर निर्भर हैं ?


उ. - ज्योतिष खगोलीय पिण्डों की गति दिशा व प्रभाव के गणितीय आंकलन पर निर्भर करता है, जबकि हस्तरेखा समौद्रिक ज्ञान अर्थात्‌ एक लक्षण विज्ञान है, जो हाथों की रूपरेखा, बनावट आदि के आधार पर फलादेश बताता है ।


प्र. - क्या जन्म कुण्डली पर ग्रहण जैसी को‌ई अवधारणा है या यह सिर्फ भ्रम है ?


उ. - कुण्डली में किसी भी प्रकार का को‌ई ग्रहण नहीं होता । कुण्डली में कारक और अकारक ग्रहों को तुलनात्मक आंकलन पर भविष्यफल कथन किया जाता है ।


प्र. - ज्यातिषीय गणना‌यें कितने प्रतिशत सही होने की सम्भावनाएंं होती हैं और ज्योतिष पर कितना निर्भर होना चाहिये ?


उ. - ज्योतिष तो अपने आप में पूर्णतः सही गणना है, परन्तु भविष्य वक्‍ता की गणना सही है या गलत यह इस बात पर निर्भर करता है कि जो व्यक्‍ति गणना कर रहा है, उसके पास ज्योतिष का कितना ज्ञान है, जिस प्रकार एक प्रशिक्षित डॉक्टर या वैद्य किसी बीमारी को डा‌इग्नोस करने में पहले उसके लक्षण व स्वभाव को समझता है फिर उसका इलाज करता है । हालांकि यह और बात है कि आज के मशीनी युग में हम मशीनी परीक्षण पर निर्भर हैं, लेकिन दोनों ही स्थितियों में डॉक्टर व वैद्य का ज्ञान और परीक्षण रिपोर्ट के आधार पर ही मरीज़ को सही इलाज मिलना सम्भव है । थोड़ी सी लापरवाही या अल्पज्ञान मरीज़ के लिये घातक सिद्ध हो सकता है ठीक उसी प्रकार ज्योतिष में ग्रहों के स्वभाव, भाव और राशि तथा आपसी ग्रहों के संबंधों के आधार पर भविष्य कथन होता है जो पूर्णतः सही होता है । परन्तु यदि ज्योतिष शास्त्री अगर ग्रहों की स्थिति व भावगत स्वभाव को समझने में थोड़ी सी भी भूल कर देते हैं तो उनका कथन गलत हो जाता है ।


प्र. - क‌ई पण्डित जन्मपत्री देख कर दोष निवारण के लिये मंत्र जाप पूजा पाठ आदि का विधान बताते हैं साथ ही वह कहते हैं कि “आप हमें ग्यारह हज़ार या फिर इक्कीस या इकत्तीस हज़ार की धन राशि दे दें तो हम आपके लिये मंत्र जाप, पूजा पाठ आदि विधान कर देंगे और आपकी कुण्डली के दोष निवारण हो जायेंगे तथा आपको मन वांछित फल प्राप्त हो जायेगा“ क्या यह सचमुच सम्भव है ?


उ. - ज्योतिष का सारा आंकलन काल समय पर निर्भर करता है । ज्योतिष में यह माना जाता है कि जो पदार्थ जीव, सजीव जिस काल में साकार रूप लिया है उस काल की ग्रह स्थिति के अनुसार उसका स्वभाव, गुण, दोष जीवन तय हो जाता है, जिसमें कभी भी विपरीत बदलाव नहीं हो सकते । थोड़ा बहुत उपायों एवं प्राकृतिक आधार पर आचार व्यवहार से उसके कुप्रभाव में कमी लायी जा सकती है, अर्थात सीधे तौर पर किसी की तकदीर बदली नहीं जा सकती है । जहाँ तक पूजा-पाठ का सवाल है पूजा का आधार श्रद्धा है, चूंकि हम साकार ब्रह्म को मानते हैं और उस पर आस्था रखकर उसका पूजन कर हम अपना आत्मबल बढ़ाते हैं तथा उस आस्था के बल पर हम विपरीत परिस्थिति में भी स्वयं को दृढ़ रख पाते हैं, पूजा का यही अभिप्राय है । जहाँ तक मंत्रों की बात है, तो मंत्र एकाग्रता लाते हैं अधिकांश मंत्र स्वर से शुरू होते हैं । स्वर सूक्ष्म रूप से ऊर्जा का द्योतक होता है जो आग्नेय ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है । हमारी वर्णमाला में व्यंजन स्थूल रूप से ठण्डी प्रवृत्ति को क्षारीय ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं । इन दोनों के संयोजन से शब्द का निर्माण होता है, जिसके उच्चारण से व्यक्‍ति को एकाग्रता आत्मबल व ऊर्जा प्रदान होती है पर यह स्वयं करने से ज्यादा प्रभावी होता है, लेकिन इसका अभिप्राय यह भी नहीं है, कि इंसान की तकदीर बदली जा सकती है । यह ठीक उसी प्रकार है जैसे कि तपती धूप में इंसान स्वयं को धूप से बचाने के लिये छाता तो लगा सकता है, परन्तु सूरज को नहीं हटा सकता । इसलिये ज्योतिष पर विश्वास रखने के साथ - साथ हमें अपने पुरूषार्थ पर भी भरोसा रखना चाहिये ।


प्र. - क्या जन्मपत्री के ज़रिये यह पता लगाया जा सकता है कि जातक पर तंत्र - मंत्र या जादू टोना किया गया है या नहीं और क्या कुण्डली के ग्रहों के अनुसार उसका तोड़ किया जा सकता है या यह महज़ भ्रम है ?


उ. - किसी की तकदीर पर किसी भी विधि द्वारा बदलाव नहीं किया जा सकता । ये महज़ एक भ्रम ही है । मंत्र, जादू, टोने के द्वारा किसी का नुकसान नहीं किया जा सकता अगर ऐसा संभव होता तो अभी तात्कालिक उदाहरण यह है कि ओसामा को मारने के लि‌ए अमेरिका को ११ वर्ष नहीं लगते ।


प्र. - क्या कुण्डली में कालसर्प जैसा को‌ई योग होता है ?


उ. - राहु और केतु सौर मंडल में दो ऐसे बिन्दु‌ओं के नाम हैं, जो 180 अंश पर आमने-सामने स्थित हैं । इसके अन्तर्गत अक्सर सातों ग्रह इकट्‍ठे हो जाते हैं, जिसमें बहुत सारे लोगों का जन्म होता है और इसी के साथ-साथ काफी अच्छी और प्रगतिशील कुण्डली वालों का भी जन्म होता है । इसी संयोग को कुछ लोग कालसर्प योग कह कर लोगों को भयभीत कर उन्हें भ्रमित करते हैं । कालसर्प योग को‌ई ऐसी चीज नहीं है, जिससे भयभीत हु‌आ जाय, इसका को‌ई भी प्रभाव नहीं होता है । कुण्डली हमेशा कारक और अकारक ग्रहों के संतुलन पर ही निर्भर करती है । जिससे यह तय होता है कि आप कितना सफल और सुखद जीवन व्यतीत करेंगे । कुण्डली में काल सर्प योग का को‌ई दुष्प्रभाव नहीं होता है ।


प्र. - प्रश्न कुण्डली क्या है और यह कितनी सार्थक है ?


उ. - ज्योतिष में हर गणना समय पर निर्भर करती है । प्रश्न कुण्डली ज्योतिष में एक बड़ी ही सार्थक विधि है । जातक के द्वारा किये गये प्रश्न के समय के आधार पर कुण्डली बनाकर उसके ग्रहों का आंकलन किया जाता है जो काफी सार्थक होता है, और उसका कथन काफी हद तक सही होता है ।


प्र. - ग्रह - नक्षत्र हर पल अपना स्थान बदलते हैं फिर कुण्डली के ज़रिये भविष्य जानने की सार्थकता कितने प्रतिशत सही है, और जन्म समय का कितना महत्व है ?


उ. - ग्रह नक्षत्र यदि चलायमान न रहें तो वक्‍त रूक जायेगा और सृष्टि भी अस्तित्वहीन हो जायेगी, इसलि‌ए ग्रह नक्षत्र का चलायमान होना एक प्राकृतिक व्यवस्था है, जो संसार व जीवन का अस्तित्व बनाये रखती है । जहाँ तक ज्योतिष में भविष्य कथन का सवाल है, जन्म के समय में ग्रह नक्षत्रों की स्थिति और आने वाले पूरे जीवन में ग्रह नक्षत्रों की स्थिति का आपस में सम्बन्ध होता है, जिसका जन्म के समय ही सारा आंकलन पता चल जाता है । जिस तरह से कैलेण्डर में आज से सौ साल बाद किस महीने की कौन सी तारीख को कौन सा दिन होगा यह सुनिश्चित है उसी प्रकार सौर मंडल के ग्रहों की चाल, गति बड़े ही सुव्यवस्थित ढंग से चलती है, जिसका सम्बन्ध जन्म के समय से ही निश्चित हो जाता है, बल्कि यूं कहें कि जबसे सृष्टि अस्तित्व में आ‌ई तब से हर दिन की रूपरेखा पूर्व निर्धारित व सुनिश्चित है । इसी प्रकार आदमी का जीवन भी सुनिश्चित होता है । इसलिये जन्मकुण्डली के बनाने के लिये जन्म समय, स्थान और दिनांक की आवश्यकता पड़ती है ।


प्र. - क्या वास्तव में ज्योतिष के माध्यम से जीवन से जुड़ी समस्या‌ओं का निवारण सम्भव है ? मसलन नौकरी न मिलना, बीमारी का ठीक न होना, दरिद्रता दूर करना, वगैरह - वगैरह ?


उ. - ज्योतिष शास्त्र जीवन का आ‌ईना दिखाने के साथ - साथ जीवन का मार्गदर्शन भी करता है । व्यक्‍ति का जीवन किस दिशा में निर्धारित है और उसे को किस दिशा में प्रयास करना चाहि‌ए । जैसे कि ज्योतिष में पहले से निर्धारित है कि अमुक समस्या का समय अमुक तारीख से अमुक तारीख तक रहेगा, उसके लि‌ए व्यक्‍ति मानसिक तौर पर तैयार हो जाता है और उस समय धैर्य नहीं खोता है । अगर समस्या का समय पता न हो तो व्यक्‍ति धैर्य खो देता है । अतः समस्या का कारण पता होने से सकारात्मक दिशा में सुधार हेतु प्रयास भी काफी हद तक व्यक्‍ति को समस्या‌ओं से निजात दिलाने में सार्थक होते हैं । जहाँ तक नौकरी की बात है तो बच्चे के जन्म के समय से ही पता लग जाता है कि वह नौकरी करेगा या व्यवसाय तो उस दिशा में उसके स्वभाव के अनुरूप दिशा देना उसके कैरियर में काफी महत्वपूर्ण साबित होता है । ठीक उसी प्रकार से बीमारी की जहां तक बात है तो ज्योतिष द्वारा यह आंकलन होता है कि कौन सी बीमारी कब और शरीर के किस हिस्से में होगी उसके अनुरूप ज्योतिष द्वारा कौन से उपाय करने चाहि‌ए यह तय करना आसान हो जाता है । जैसे की अगर किसी को पाचन की समस्या हो रही है तो कुण्डली में यह पता चल जाता है कि उसे यह समस्या मंदाग्नि या जठराग्नि के कारण है । मंदाग्नि, जठराग्नि पित्तज प्रवृति के ग्रहों की प्रबलता या निर्बलता पर निर्भर करते हैं । ऐसी स्थिति में उन ग्रहों को सन्तुलित करने का उपाय स्वास्थ्य के लि‌ए कारगर साबित हो सकता है ।


प्र. - क‌ई बार लोग जीवन में सफलता आदि पाने के लिये अपने नाम के अक्षरों में फेर बदल करवाते हैं या फिर नाम ही बदल लेते हैं तो यह क्या ज्योतिष विद्या के ज़रिये सचमुच यह सम्भव है या महज़ भ्रम है ?


उ. - जैसा कि मैंने पहले भी बताया कि धनात्मक, ऋणात्मक व तटस्थ ऊर्जा‌ओं के संयोजन से सृष्टि संचालित है ठीक उसी तरह से हमारे यहाँ वर्णमाला के अक्षर स्वर और व्यंजन के संयोग से शब्द का निर्माण होता है स्वर धनात्मक ऊर्जा का प्रतीक है और व्यंजन ऋणात्मक ऊर्जा का प्रतीक है । जिस आदमी के शरीर का आधार पित्तज ग्रहों से या आग्नेय प्रवृति के प्रधान ग्रहों द्वारा उसका लग्न निर्धारित हो उसके लि‌ए स्वर अक्षर से नाम ज्यादा लाभकारी होते हैं । जिसमे लग्न कफज या क्षारीय ग्रहों पर आधारित हों उसके लि‌ए व्यंजन अक्षर से नाम लाभकारी होता है इसके साथ-साथ ज्योतिष का ही एक अंग अंक ज्योतिष के अनुसार उन अक्षरों के अंकों से जोड़कर जातक के मूलांक से मिलान कराया जाता है तब वह नाम लाभकारी होता है और प्रसिद्धि दिलाता है, लेकिन नाम बदल देने से ही सब कुछ नहीं होता है आदमी की प्रसिद्धि और प्रगति उसकी कुण्डली पर भी निर्भर करती है ।


इसमें कहीं को‌ई दो राय नहीं कि मनुष्य का भाग्य और पुरूषार्थ दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। परन्तु यह भी सच है कि भाग्य से मनुष्य जो पाता है उसे कायम रखने के लि‌ए उसे प्रयास करने होते हैं लेकिन जो भाग्य में नहीं है उसे कर्मयोगी व्यक्‍ति पुरूषार्थ से हासिल कर लेते हैं। जीवन के अनेक पहलु‌ओं को प्रभावित करने वाला ज्योतिष शास्त्र हमारी समस्या‌ओं के हल तो अवश्य देता है परन्तु ज्योतिष विद्या भी कर्म पर बल देती है । इसलि‌ए यदि हम स्वयं पर भरोसा रखेंगे तो भ्रम और भ्रान्तियों के मकड़जाल में भी कम फसेंगे ।

Thursday, June 2, 2011

संपादकीय


प्रिय सम्मानित पाठकगण,

आप सबके निरन्तर बढ़ते सहयोग व प्यार के लिए दिल से आभार व्यक्‍त करता हूँ । हमारा आगामी जून -२०११ का चौथा अंक ‘मनरेगा में हो रहे राष्ट्रीय अनियमितता एवं भ्रष्टाचार पर केन्द्रित है ।’ हमने यह दिखाने की पूर्णतया कोशिश की है, कि किस तरह से मनोवांछित ढंग से घर बैठे रोजगार द्वारा धन ग्रहण करने की योजना चल रही है । साथ ही साथ उपयुक्‍त एवं सुयोग्य व्यक्‍तियों तक इसका धन ना पहुंचाने के बजाय उच्चस्तरीय अधिकारियों व दबंगों द्वारा इसके धन का दुरूपयोग किया जाना । इस पर सरकार एवं जनता मूक दर्शक बनकर इस विवशता का हिस्सा बनती जा रही है ।

कुछ जगह पर किसी ने आवाज़ उठायी तो या उसकी हत्या हो गई, या फिर उसकी आवाज़ को बंद कर दिया गया । इन बिंदुओं को आपके समक्ष रखने का छोटा-सा प्रयास है । आशा है कि हमारा यह प्रयास आपके दिलों तक पहुँचेगा और इस कुव्यवस्था के खिलाफ एक मजबूत आवाज़ बनकर इसका विरोध करेंगे । साथ ही नियमित स्तम्भों में अंतर्राष्ट्रीय में ओसामा व अमेरिका पर केन्द्रित किया गया है, तथा यह बताने की कोशिश की गई है, कि अभी भी आतंकी खतरे किस तरीके से इस देश व दुनिया को अपने भय के गिरफ़्त में लिए हुए हैं । साथ ही अमेरिका का जो विश्‍व जगत में स्वछन्द रवैया है, उसका आगामी दुनिया पर क्या असर होने वाला है । इस घटना में पाकिस्तान का वास्तविक चेहरा जिस तरह सामने है, उसमें पाकिस्तान व अमेरिका के रिश्तों पर भी चर्चा की गई है ।

राष्ट्रीय मुद्दे पर जनवृद्धि पर सरकार की असफलता एवं उत्तरांचल के मुख्यमंत्री के साक्षात्कार को शामिल किया गया है । साथ ही साथ उत्तरप्रदेश में भूमि अधिग्रहण मामले में सरकार का नाटकीय रवैया एवं उसमें राजनीति को भी सम्मिलित किया गया है । साहित्य में अच्छी कहानियां, कविताएं एवं ज्योतिष में इस बार और भी रूचिकर विषयों को शामिल किया गया है । जिसमें रंगों का जीवन में महत्व पर विशेष जानकारी दी गई है । आशा है, यह सारी विषय-वस्तु आपको काफी पसन्द आएगी, साथ ही हमें आपकी प्रतिक्रिया का भी इंतजार रहेगा । आपसे अनुरोध है, कि आप निरंतर अपना प्यार बनाए रखें, तथा अपने जानने वाले लोगों को भी इस पत्रिका से जोड़ने का बहुमूल्य सहयोग व सुझाव प्रदान करें ।

धन्यवाद